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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 5

स्वप्न के जैसी यह दुनिया है । कब जीवन – स्वप्न पूरा हो जाए… कौन कह सकता है ? ‘यह कार्य मैं कल सबेरे करूंगा’ ऐसा कौन बोल सकता है । कल जीवात्मा का जीवन होगा या नहीं…? इसलिए मैं तुम्हें किस तरह कह दूं कि पाँच दिन के पश्चात मैं तुम्हारे घर पर पारणा करने के लिए आऊंगा ।…

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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 4

राजा का दिल भर आया …। उनकी आंखो में आंसू उभरने लगे । गदगद स्वर में उन्होंने अग्निशर्मा को कहा : ‘भदंत, आपको घोर पीड़ा देनेवाला , आपका उत्पीड़न करनेवाला , और आपके ह्रदय को संतप्त करनेवाला वह पापी राजकुमार अ -गुणसेन मैं स्वयं ही हूं ।’ राजाने तपस्वी के चरणों में अपना मस्तक रख दिया…। आंसुओं से तपस्वी के…

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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 3

ब्राह्मण पुत्र – अग्निशर्मा! आज लाखों बरसों के बाद नये स्वरुप में मेरे सामने बैठे हैं । मैं इनका निकुष्ट अपराधी हूं ।’ शरम के मारे राजा गुणसेन का मुंह झुक गया । जमीन पर द्रष्टि स्थिर करके उन्होंने तपस्वी से पूछा : ‘भदंत , उस राजकुमार ने आपको , त्रैलोक्य में बंधुसमान धर्म के लिए कैसे प्रेरणा दी ?’…

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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 2

राजा अपना नाम सुनकर चोंक उठा। उसकी आंखे विस्फारित हो उठी। उसके चेहरे पर आश्चर्य और अवसाद की मिश्र रेखाएं उभर आई । उसने अग्निशर्मा का नाम कुलपति से सुना था …. और अग्निशर्मा के समीप रुबरु बैठकर वार्तालाप कर रहा था, विस्मृति की खाई में अग्निशर्मा दबा हुआ था। वह अग्निशर्मा यादों के मंजर में नहीं था… पर सामने…

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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 1

‘महात्मन , वे महातपस्वी कौन हैं ? और कहां पर हैं ?’ ‘राजन , उस महातपस्वी का नाम है अग्निशर्मा । और देखो , वह सामने जो आम्रवुक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन बना हुआ दिख रहा है ,वही है महातपस्वी अग्निशर्मा ।’ कुलपति ने दूर से उंगली से निर्देश करते हुए आम्रवुक्ष बताया। राजा ने कुलपति से कहा…

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