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अग्निशर्मा का अनशन – भाग 5
सतत द्वेष वैर औऱ गुस्से से उसकी गोल गोल आँखो में से जैसे कि आग के शोले टपक रहे है। उसके मोटे मोटे से होठ रह रहकर फड़फड़ा रहे थे। जैसे कि नफरत और गुस्से का लावा उफ़न उफ़न कर बाहर आ रहा है। इस नीच राजा को इतने सारे तापसौ में मै ही अकेला उपहास पात्र मिला ? मेरे…
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 4
अग्निशर्मा ने गुस्से भरी दृष्टि से राजमहल को देखा और तत्काल वहाँ से वापस लौट गया। उसी राजमार्ग पर से वह वापस लौटा कि जिस रास्ते से वह आया था। उसने राजा के लिए खड़ीं की हुई प्रशस्त भावों की सुंदर इमारत टुकड़े-टुकड़े होकर मिट्टी में मिल गई थी। और अब वहां पर अशुभ कुत्सित और अति उग्र के विचारों…
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 3
वसुंधरा से राजपुत्र के जन्म के शुभ समाचार प्राप्त होते ही राज सेवको ने विविध वाजिन्त्र नाद से वातावरण को मुखरित कर दिया। विलासिनी स्त्रियों के टोले मिलकर राजमार्ग पर नृत्य करने लगे। नगर की कुलवधुए सुंदर वस्त्र-अलंकारो से सज्ज होकर राजमहल के विशाल पटाँगन में एकत्र होकर खुशी में झूमती हुई गीत गाने लगी। राजपरिवार की नृत्यांगनाए खिलखिलाती हुई…
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 2
प्राणनाथ आपके मनोरथ शुभ है। श्रेष्ठ है। यह सब आप बड़ी सरलता से कर सकेंगे। आप के लिए सब कुछ सम्भव है। देवी इस महात्मा को मैने किशोरावस्था में काफी कष्ठ दिया हैं। इनके मन मे मेरे लिए किसी भी कोने में मेरे लिए दुर्भवना या नफरत का अंश ना रहे, इस तरह मुझे इनकी सेवा भक्ति करनी है। महरानी…
अग्निशर्मा का अनशन – भाग 1
कुलपति के निर्दभ वात्सल्य ने अग्निशर्मा के उपशांत भाव ने, और तपोवन के सभी तापसो के गुणानुराग ने राजा ने गुणसेन ने मनस्ताप को एवं अपराध भाव को साफ कर दिया था। राजा रानी के मन मे तपोवन के प्रति लगाव सा पैदा हो गया था। अग्निशर्मा को कुशलप्रच्छा कर के प्रतिदिन राजा उसे माल्यापर्ण करते थे।उनके शरीर पर सेवको…