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नई दुनिया की सैर – भाग 5

‘जो हो सो अच्छे के लिये । ऐसा ज्ञानी पुरुषों ने कहा है न ?’ ‘कहा है । परन्तु अच्छा नहीं होता वहां तक … जो अधीरता उफनती है …. वो जीवात्मा को न किये जाने वाले विचारों में डुबो देती है । यक्षदीप पर छोड़ने के बाद एक के बाद एक जो घटनाएं मेरे आस-पास पैदा हुई … वे…

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नई दुनिया की सैर – भाग 4

यहां पर कुल बावन जिनमंदिर है। ‘अंजनगिरी’ पर चार जिनमंदिर है … ‘दधिमुख’ पर्वत पर सोलह जिंप्रासाद है जबकि ‘रतिकर’ पर्वत पर बतीस जिनालय है ।’ ‘तुमने बिल्कुल सही संख्या बतायी … अब मैं उन जिन – मंदिरों की लंबाई ऊँचाई-चौड़ाई बता दूं ?’ ‘बोल।’ ‘जिनमंदिर सौ योजन लम्बे है … पच्चास योजन चौड़े है … एवं बहतर योजन ऊँचे…

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नई दुनिया की सैर – भाग 3

‘लो , अपन क्षीरोदधि पर आ गये । सचमुच , पानी दूध जैसा ही है ।’ ‘अब जो द्विप आयेगा …. उसका नाम घुतवर द्विप।’ ‘और इसके बाद आयेगा, घुतवर समुद्र । द्विप का जो नाम , उसी नाम का समुद्र ।’ विमान तीव्र गति से उड़ रहा था । लाखों योजन के द्विप-समुद्रो को बात ही बात में उलांघ…

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नई दुनिया की सैर – भाग 2

‘वो तो है ही … कालोदधि सागर तो आठ लाख योजन का है न ?’ ‘तुझे तो द्विप समुद्र की लम्बाई-चौड़ाई भी याद है … कमाल है ।’ ‘मैंने अपने पिता के घर पर यह सारा अध्ययन किया हुआ है न ?’ ‘इधर देख बहन , अपन अब ‘धातकी खंड’ के ऊपर से उड़े जा रहे है ।’ ‘यह भी…

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नई दुनिया की सैर – भाग 1

‘कह बहन । मेरी शक्ति व सामथ्र्य की मर्यादा में जो भी तेरा काम होगा मैं जरूर करूंगा ।’ ‘तुम जिस नंदीश्वर द्विप की यात्रा कर आये … उस नंदीशवर द्विप की यात्रा मुझे नहीं करवा सकते ?’ ‘क्यों नहीं ? जरूर … जरूर । करवाऊंगा मेरी बहन। नंदीस्वर द्विप तो देव व विद्याधरों का महान शास्वत तीर्थ है …।…

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