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जीवन जैसे कल्पवृक्ष – भाग 2
दो दिलों में प्यार का ज्वार उफन रहा था । मन की तरंगों के आगे दरिये की लहरें क्या माईना रखती है ? फिर भी यह तूफानी दरिये की तरंगें नही थी,,,, उफनता सागर भी अंकुश में था । उसे देश और काल का ख्याल था। सुरसुन्दरी ने कहा : ‘देखो,,,,पूरब में सूरज कितना उपर निकल आया है,,,, मुझे लगता…
जीवन जैसे कल्पवृक्ष – भाग 1
सुबह का बालसूरज सुरसुन्दरी के चेहरे पर अठखेलियां कर रहा था। उसकी रक्तिम आभा में…सुन्दरी का आंतर रुप अमर को पहले पहल नजर आया । सरगम के सप्त स्वरों को आंदोलित करती हुई शीत हवा हवेली के झरोखें में से आ आ कर कमरे को भर रही थी। भैरवि के करूण फिर भी मधुर स्वर में गुंथी हुई सुरसुन्दरी की…