Archivers
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 6
पाठशाला मे किसी भी छात्र -छात्रा ने दुपहर का नाश्ता नहीं किया। सभी के नाश्ते के डिब्बे बंद ही रहे। सुरसुन्दरी तो जैसे पुरी पाठशाला में अकेली हो गई थी।कोई भी छात्र या छात्रा उसके साथ बात तक नहीं कर रहे थे। चुकी सबको मालूम था की अमरकुमार क्यों उदास है। सुरसुन्दरी का मन व्यथा से अत्यन्त व्याकुल हो उठा।…
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 5
दुसरी दिन जब सुरसुन्दरी पाठशाला मे आयी तब अभ्यास शुरू हो चुका था। पंडितजी सुबुद्धि अध्ययन करवा रहे थे। सुरसुन्दरी ने पंडितजी को नमन किया और अपनी जगह पर जा बैठी। उसने अमर की ओर निगाहे की और उसके दाल मे वेदना की कसक उठी। अमर का चेहरा मुरझाया हुआ था। उसकी आँखे जैसे बहुत रोयी हो वैसी लग रही…
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 4
अमरकुमार ने पाठशाला के दरवाजे बंद किये ताला लगाया और चल दिया अपनी हवेली की ओर। अमर का मन व्यथित था। उसके सुन्दर चेहरे पर विषाद की बदली छायी थी। हवेली में पहुँचकर सीधा ही अपने अध्यनकक्ष में गया और पलंग में औंधा गिर पड़ा। सुरसुन्दरी नाराजगी, गुस्से और खिन्नता से भरी हुई पहुँची अपने महल में। माता रतिसुन्दरी को…
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 3
सुरसुन्दरी की हिरणी सी आँखो में आज प्यार नहीं था, आग जैसे बरस रही थी। उस आग ने मुझे भूलासा दिया मेरे प्यार को जला दिया। शीतल चाँद सा उसका गोरा मुखड़ा तपे हुए सूरज सा लाल हो गया था । मै तो उसके सामने ही नहीं देख सका ।उसके मीठे मीठे बोल आज जहर से हो गये थे ।…
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 2
अमर कुमार अपनी जगह पर बेठा हुआ था। उसने अपना सर पुस्तक में छुपा रखा था। पंडितजी की अनुपरिस्थिति में अमर कुमार ही पाठशाला को सम्हालता था ।उसमे छात्र छात्रा चले गये अपने अपने घर फिर भी अमर कुमार अकेला बेठा रहा गुमसुम होकर। उसका तन मन बेचेन था । एक पल उसे गुस्सा आता था बस केवल सात कोडी…