कोई कहेगा कि भगवान ने दिये!
कोई कहेगा कि देवी-देवता ने दिये!
कोई कहेगा कि मेरे दुश्मनों ने दिये!
कोई कहेगा कि मेरे अपनों ने दिए!
जिनवानी कहती हैं ये दुःख आपने ही अपने लिए बना रखें है,आपके किए हुए कर्मों से ही आपको दुःख होता है!
आप पूछोगे की मैंने अपने लिए दुःख क्यूँ बनाया है?
इसका उत्तर है ” प्रमाद ” !
प्रमाद की व्याख्या बहुत बड़ी है:
प्रमाद में राग, द्वेष भी आ गया, आलस भी आ गया, क्रोध करना भी आ गया, छल-कपट करना भी आ गया, चोरी करना भी आ गया, माँस-अण्डा खाना भी आ गया, दूसरे की स्त्री को गंदी नज़र से देखना भी आ गया आदि।।
छोटा सा उदाहरण: व्यक्ति स्वाद के चक्कर में ज़्यादा खा लेता है,और फिर उसका पेट दर्द हो जाता,बीमारियाँ हो जाती हैं!
अपने दुखों का कारण तू क्यूँ दूसरों को मानता है,तू ही तो कर्ता है ,तू ही तो भोगता है ,
“जैसे कर्म करेगा , वैसे ही तो भोगेगा,”
करनी का फल तो हर किसी को भोगना पड़ा है
“अपना किया हुआ ही तो तू भोग रहा है,
नहीं तो क्या मजाल किसी की तुझे दुःख दे दे”!
“”अपने को दुःख होता है,उसमें तो आप कहते हो की मुझे बचाए कोई पर जब आप दूसरों को दुःख देते हो तो आपको उनका दर्द महसूस नहीं होता!””
“अगर हमेशा के लिए सभी दुखों से छुटकारा चाहते हो तो प्रमाद से अप्रमाद में आओ!
ज़्यादा नहीं तो व्यर्थ के पापों से तो बचो,पाप करते हुए उसमें मज़ा लेने से बचो,बड़ा व भयंकर क्रोध करने से बचो,जरूरतमंद की सहायता करो,बड़े बुज़ुर्गों की सेवा करो,दान दो,साधुओं की निर्दोष सेवा करो,उनका प्रवचन सुनो,अपने बच्चों को धर्म के संस्कार दो,दिखावे में ना उलझो!”
अपनी आत्मा का कल्याण करना है तो पुरुषार्थ आपको ही करना पड़ेगा!!
राह फूलो भरी नहीं तो काँटों भरी भी नहीं है और मंजिल(मोक्ष)इतनी सुन्दर हो तो हिम्मत दोगुनी हो जाती है ।काम कठिन जरूर है मगर आसान मानकर करेगें तो ही आगे बढ़ पायेगें।
और फिर जब बहुत सारे यात्री(साधु, साध्वी, श्रावक,श्रविका )यात्रा में नजर आते है तो राह आसान लगने लगती है। हमारी तो अभी शुरुआत भर है आप भी बढिए हम भी बढ़ते है कम से कम आज जहाँ है वहां से कुछ तो फासला तय करेंगे।
“आनंद जिसकी तुम्हें तलाश है,वह तुम्हारे अंदर ही है”