विश्व पूज्य दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिश्वरजी म.सा. के पट्टधर, सुविशाल गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरिश्वरजी म. सा.का आज दि. 16 अप्रेल को अर्धरात्री दि. 17 अप्रेल 2017 वार सोमवार को सुबह १२.१५ बजे भांडवपूर तीर्थ ( भीनमाल) में देवलोक गमन हुआ है। यह त्रिस्तूतिक परंपरा व समस्त जैन समुदाय को बहुत बडी क्षति पहुंची । अन्तिम दर्शन व चढावे व अन्तिमविधी भाण्डवपुर तीर्थ में परम पूज्य गुरुदेव लोकसंत वीर श्रमण जैनाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरिजी महाराजा का 17 अप्रैल को भांडवपुर तीर्थ में कालधर्म हुआ व चढावे 17 अप्रैल को व गुरुदेव श्री की अंतिमविधि 18 अप्रैल (सातम) मंगलवार को सुबह 10 बजे भाण्डवपुर तीर्थ मे होगा।

एक नज़र डालते इतिहास के पन्नों पर-
आपका जन्म थराद तहसील के पेपराल गांव में वि. स्. 1993 मगसर वदी 13, दिनाँक 11.12.1936, शुक्रवार की शुभ बेला में धरु परिवार के श्रेष्ठीवर्य श्री स्वरूपचन्दजी के घर पुण्यवती माता पार्वतीदेवी की कुक्षी से हुआ था । आपका नाम पूनमचंद रखा गया l
दीक्षा 16 वर्ष की युवा अवस्था में आपश्री को वैराग्य उच्च सीमा को छू गया और वि. स. 2010, माघ सुदी 4 को प. पूज्य आचार्यदेव श्री मद् यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के वरद हस्ते आप दीक्षित हुए और आपका नाम मुनि जयन्तविजय रखा गया । कुछ ही वर्षो में आपके मधुर और शांत स्वभाव के कारण आपश्री ” मधुकर ” उपनाम से पहचाने जाने लगे l
*उपाचार्य :* वि. स. 2017 कार्तिक सुदी 15 को पूज्य आचार्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी म. सा,. ने मुनि श्री विद्या विजयजी को आचार्य एवं मुनि श्री जयंत विजयजी को उपाचार्य से अलंकृत किया l
आचार्यपद : वि. स. 2038 में कुलपाकजी तीर्थ की पावन धरा पर अ. भा. त्रिरुस्तिक संघ ने आपको “आचार्यपद” देने का निर्णय लिया । वि. स. 2040 माघ सुदी 13 दिनाँक 15. 02. 1984 के शुभ दिन श्री भांडवपुर तीर्थ पर सकल श्री संघ की उपस्थिति में “आचार्यपद” से अलंकृत कर आचार्य श्री मद् विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म. सा. नाम घोषित किया गया l
राष्ट्रसन्त वि. स. 2047 सन् 1991 जावरा में आपश्री को तत्कालीन उपराष्ट्रपति महामहिम डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने “राष्ट्र सन्त” से अलंकृत किया l
रतलाम चातुर्मास के अंतर्गत 18. 09.2016 को 36 कौम के सकल संघ ने सामूहिक रूप से गुरुदेव की धर्म प्रभावना को संज्ञान में लेकर “लोकसन्त” की पदवी से अलंकृत किया l
1.मुनि दीक्षा के 64 और आचार्य पदवी के 33 वर्षों का संयम जीवन
2.16 वर्ष की आयु में संयम स्वीकार किया।
3.आपश्री के वरदहस्त से 236 जिनमंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा हुई।
4.आप श्री के सद्-उपदेश से 250 से ज्यादा गुरु मंदिरों का निर्माण हुआ।
5 क़रीबन डेढ़ लाख किलोमीटर का पद विहार कर लाखों आत्माओं को आत्म कल्याण का मार्गदर्शन
6200 से अधिक भव्यात्माओं को दीक्षा प्रदान की।
7 अनेक तीर्थों के छ:रि पालित संघ, नव्वाणु यात्राएँ, उपधान तप, सतत् नवकार मंत्र आराधना तप आदि सम्पन्न करवाये।
8.वर्तमान में 195 साधु-साध्वी वृन्द आपकी आज्ञा में देशभर में धर्म की उत्कृष्ट प्रभावना कर रहे है।
9 दिनाँक 19. 02. 2017 को वीरभूमि थराद नगर में 24 मुमुक्षुओं की सामूहिक दिक्षा (आत्मोद्धार ) हुई।
