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वंदना में से प्रगट होती है संवेदना

ह्रदय की संवेदनशील पर मानव के संयोग की कितनी बड़ी असर देती है। संयोगो के माध्यम से ही इंसान का जीवन घडता है। विलासिता के ढेरो पर जब कोई करोड़पति का लड़का ठंडी की कड़कड़ाती रात में हीटर की ऊष्मा से या गर्मी की वस्तुओ के द्वारा उस ठण्ड से बचने के लिए जब प्रयत्न करता है। तो उस समय उसे खुल्ले शरीर फूटपाथ पर सोते हुए बच्चे याद भी नही आते है। ब्यूटी पार्लर में भयंकर पैसो का धुला करते वक्त हमे वह बीमार गरीब याद आते है। जो मात्र खून की कमी के कारन अपना जीवन छोड़ कर चले जाते है। आर्किटेक के पास जा कर हम उस घर को सजाने सवरने में लाखो खर्च कर देते है। और उसी घर में हमे रसगुल्ले खाते-खाते हम समाचार पत्रो में हज़ारो लोगो के बेघर होने के समाचार पडकर आगे बढ़ जाते है। हमारे दिल पर उसकी इस वेदना की कोई असर ही नही होती है।

हम शायद नोटों के बंडलों की आगे इतने लोलुप हो जाते है की उसके आगे हमे गरीबो की करूण दशा दिखाई नही देती है।

हम तो फ्रिज में साल भर चले उतने आम स्टोर कर लेते है तो फिर हमें जो बेचारा तीन दिन से भूका है उसकी भूख का कैसे ख्याल आ सकता है।

यह बात मै इसलिए बता रहा हूं की अगर मुझे संवेदना को पैदा करना है तो उसके लिए वेदना ज़रूरी है। दुःख, पीड़ा, आपत्ति, कष्ट, समस्या विपदा आदि यही सब संवेदनशील हृदय को सर्जन करते है। जब मानव खुद इस वेदना से प्रसार होता है तो दुसरो के लिए संवेदना को बहा सकता है।

जब मानव खुद भूखा रहा होता है तो उसको तिन दिन से भूखे भिखारी की पीड़ा का आभास हो पाता है। और आज हम ऐसी ही एक वैज्ञानिक प्रक्रिया की बात कर रहे है।

जब श्रमण (साधू& साध्वी) भगवंतों को देखते है तो उनके घौर 22 परिषह का स्मरण हो जाता है। जिन परिषहो को सहन करके जयणा के मार्ग पर निज़रा के साथ आगे बड़ते है। परंतु यह 22 परिषह तो एक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा एक संवेदनशील हृदय का सर्जन होता है। जिसके माध्यम से हृदय में रही हुई अनादि काल की निष्ठुरता भी पिगल जाती है। और सर्जन होता है भाविक ह्रदय का जो की प्रभु का प्रतिबिम्ब देखकर भाव विभोर हो जाता है। कर्मो की अधीनता देखकर लोगो के प्रति करुणा के आँसू बहता है। ज्ञान की गहराई देखकर हृदय नाचने लगता है। लोगो की आधि, व्याधि और उपाधि देखकर हृदय भी हिल जाता है।

इसीलिए तो मासक्षमण, ओली, वर्षीतप आदि ऐसे कष्ट मय धर्म का पालन करने वाले जैन बाड, दुष्काल, आंधी, तूफान के समाचार सुनते ही काप जाते है। और दान की नदिया बहा देते है। तो कतलखाने, पोलेर्टीफार्म , कसाई खाने के आगे खुल्ले आम जेहाद करते है।

जो खुद को वफादार नही वह किसी को वफादार नही होता
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