संसार की धन-दौलत की चाह में भटकने वाले मनुष्यों को गुरू अत्यन्त करूणा करके समझाते है कि अगर आप इस समय मोक्ष में होते तो अनन्त सुखों को भोग रहे होते । वर्तमान में आप इस समय संसारिक धन-दौलन, वैभव एवं भोग सामग्री पर मोहित हो और आप को इसे गृहण करते समय एक पल भी इस बात पर विचार नहीं है कि इस तुच्छ वस्तु के मिलते समय आप अनन्त सुखों को खो रहे हो । इस महानतम अकल्पनीय हानि पर एक बार तो द्रष्टि करो, बस फिर आपका कल्याण हो जावेगा l
हे प्रियम् , जरा विचार तो करो । अगर आप किसी राजा के यहाँ पैदा हुए होते तो इस समय कितने लौकिक सुख भोग रहे होते, लेकिन इन समस्त संसारिक सुखों से भी अनन्त गुने सुख आप अगर मोक्ष में होते, तो वहाँ पर भोग रहे होते । राजा के यहाँ पर जन्म लेना तो कदाचित् कर्मों के आधीन है, परन्तु आप तो वास्तव में मोक्ष महल के युवराज हो । वहाँ की सत्ता को जब आप चाहों, गृहण कर सकते हो । यह आप का आत्म-सिद्ध अधिकार है l
*इस बात को निम्न कथा से स्पष्ट करते है -*
एक राजा था, उसका एक राजकुमार था जिसका नाम उसने चैतन्यदेव रखा था । दुर्योग से कुछ वर्षों के बाद राजा की रानी का देहावसान हो गया । तब कुछ समय बाद राजा ने दूसरी शादी कर ली । सौतेली माँ ने आते ही सोचा कि अगर चैतन्यदेव चला जावे, तो मेरा जो पुत्र होगा, वही राजगद्दी सम्भालेगा। अतः उसने राजा को इतना ज्यादा चैतन्यदेव के खिलाफ कर दिया कि उसने अपने ही दस-ग्यारह वर्ष के पुत्र को देश-निकाला दे दिया l
बेचारा छोटा सा बालक कोई भी साधन न होने से किसी दूसरे देश में गली-गली, शहर-शहर भटकता हुआ भीख मांगकर अपना पेट भरने लगा । धीरे-धीरे इस तरह दस-बारह साल बीत गये । चैतन्यदेव भी भूल चुका था कि वह एक युवराज है । वह तो बस करुण स्वर में लोगों से भीख मांगता रहता था । कुछ लोग भीख देते थे, कुछ लोग दुत्कारते थे तो कुछ चोर समझ मार-पीट भी देते थे । इस तरह उसका जीवन चल रहा था l
इधर राजा के यहाँ पर बहुत प्रयत्न करने पर भी दूसरी कोई औलाद नहीं हुई । अब राजा को अपने किये पर काफी पछतावा होने लगा। इस पछतावे में वह बीमार रहने लगा । तब उसने कर मुनादी करा दी कि जो भी युवराज का पता बतायेगा, उसे मुंहमांगी दौलत दी जावेगी, फिर भी युवराज का पता न चला । तब राजा ने अपने एक विद्वान मंत्री को बुलाया और उसे अपना व्यथा कह सुनाई और उससे से मदद मांगी । मंत्री ने राजा को सान्त्वना दी और इस काम का बीड़ा उठाया । मंत्री ने चारों दिशाओं में दूत भेजे और सभी जगह पर तारतम्य बिठाया । तब उसे पता चला कि दूर देश में एक भिखारी है जो शायद राजकुमार हो । मंत्री शीघ्र ही वहाँ पर पहुँचा और उसने सभी लक्षणों से उस भिखारी की परीक्षा की । यकीन होने पर कि यहीं युवराज है, वह उसके पास गया, तो वह भिखारी डर कर भागने लगा कि कहीं ये लोग उसकी पिटाई न कर दें । तब मंत्री ने धीरे से उसका नाम लेकर पुकारा कि रूको चैतन्यदेव । तो उस भिखारी को यह नाम कुछ सुना हुआ लगा और वह रूक गया । फिर मंत्री ने उसे सभी तरह से समझाया कि आप तो वास्तव में राजकुमार हो । आप के हाथ में तो यह राजचिन्ह बना हुआ है l
जैसे-जैसे उस भिखारी को अपनी पहचान याद आने लगी उसके चेहरे पर छाया डर, उदासी और करुणा दूर होने लगी और कुछ ही समय में उसका चेहरा राजत्वपने के तेज से दमकने लगा । कहां तो पहले वह मंत्री से डर कर भाग रहा था और अब उसने मंत्री को आदेश दिया कि कहाँ है मेरे दास-दासी ? मेरा रथ कहाँ पर है जिस पर बैठ कर मैं अपने राजमहल में जाऊँगा ?
देखो, इस समय भी वह भिखारी के ही वेष में था, तो भी वह अपने राजत्वपने का सुख अनुभव करने लगा था । फिर शीघ्र ही वह अपने देश लौट आया और अनन्त सुखों में लीन हो गया l
इस कथा में बहुत गंभीर भाव भरे है । अनन्त केवलज्ञानी भगवान, सद्गुरू बारम्बार इस परमात्मा को समझा रहे है कि आप तो मोक्षमहल के युवराज हो, किन्तु आप अपना स्वरूप भूलकर इस संसार में दीन-हीन बने बैठे हो । अरे जरा अपनी ओर तो देखो । जैसे सिद्ध भगवन्त अनादि अनन्त, कारण परमात्मा रूप, अनन्त गुणों के स्वामी, सहजानन्दी शुद्ध स्वरूपी है, वैसे ही आप का भी स्वरूप है । फिर सद्गुरू रूपी मंत्री के बारम्बार समझाने पर भी आप यकीन क्यों नहीं कर रहे हो ? आप का चेहरा सिद्धलोक के युवराज के तेजस्व से क्यों नहीं दमक रहा है ? आप अभी भी क्यों दीन-हीन दिखने वाले भिखारी बने हुए हो ?
भले ही अभी आपकी वेशभूषा भिखारी की हो, परन्तु क्या मोक्षत्व का तेज आप के चेहरे पर नहीं दिखना चाहिये ? क्या आप को सद्गुरू पर विश्वास नहीं है ?