क्रोच पक्षी की रक्षा के लिए जिसने प्राणांत उपसर्ग के अंत में केवलज्ञान पाकर जो मोक्ष में पधारे उन्ही मेतारज मुनि का यहाँ संस्मरण करते है।
उसी भव में मोक्ष में जानेवाले इस महापुरुष को नीच कुल में क्यों जन्म लेना पड़ा यह यदि जानना हो तो उनके पूर्वजन्म पर नजर डालनी पड़ेगी ।
पिछले भव में वे उज्जयिनी नगर में पुरोहित थे । उन्होंने जब नवयौवन को प्राप्त किया वही उनकी शरारते बेकाबू बन गई क्योंकि शहर के राजकुमार के साथ उनकी मित्रता थी। उज्जयिनी में उस समय मुनिचंद्र नामक राजा राज्य संभालते थे।
यह मुनिचंद्र यानि चद्रावंतसक राजा का पाँचवा नंबर का पुत्र । मुनिचंद्र के बड़े भाई का नाम सागरचंद्र था। सागरचंद्र को पिताजी ने साकेतपुर का विशालराज्य सौपा था परंतु राज्य के लिए सौतेली माताजी से कलह की वजह से वैराग्य पाकर उन्होंने दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने के पहले राज्य के सिहांसन पर खुद की सौतेली माता के पुत्र गुणचंद्र का खुद ही राज्याभिषेक किया।
दीक्षा लेकर सागरचंद्रमुनि उत्तम सयंम पालने लगे। एक