मंदिर के ओटे पर फेंका हुआ कार्पटिक कल्पान्त कर रहा था तथा जोर जोर से ऐसा चिल्ला रहा था कि कुदरत के घर में अँधेरा है अँधेरा । देखो, निर्दोष हूँ । मक्खी भी नही मारी तो भी मेरे ऊपर हत्या का आरोप करने में आया तथा मेरे दोनों हाथ काट देने में आये ।
उसके काटे हुए हाथ में से रक्त निकल रहा था तथा सारे शरीर से असह्य वेदना जागी थी ।
तब मध्यरात्रि का समय था । वँहा एकाएक आकाशवाणी हुई की इस जन्म में तूने भले ही गुनाह नही किया हो परन्तु फिर भी तू गुनाहगार है , इसलिए ऐसी करुण सजा मिली है ।
सुन! पिछले जन्म में तेरा भाई एक बकरी को हलाल कर रहा था । तब तूने बकरी के दोनों कान बलपूर्वक पकड़ रखे । वह बकरी जरा भी हिल नही सके तथा तेरे भाई उसे आसानी से ख़त्म कर दे , ऐसे हत्या के काम में तूने मदद की ।
तेरा वह भाई म्रत्यु पाकर इस भव में इस प्रभासपाटण में लोहार के रूप में उत्पन्न हुआ । वह बकरी इस भव में लोहार बने हुए तेरे भाई की पत्नी बनी । तू बना , कार्पटिक आज सोमनाथ की यात्रा के लिए तू यंहा आ गया । बहुत थक जाने से तुझे आश्रय की जरुरत थी जिससे सुख स सो सके । तू इस लोहार के घर में सहमति पाकर सो गया तब ही पिछले जन्म का कर्म उदय में आया ।
लुहारीन ने खुद के पति की हत्या कर दी । उसके बाद में खून से भरी हुई चाकू तेरे पास रख दी । तेरे कपडे के ऊपर खून के धब्बे लगे । खुद के वस्त्र तथा हाथ धो दिए । घर के बहार निकलकर उस पापिनी ने हाहाकार किया । मेरे पति को इस पापिने मार दिया । पकड़ो …….. पकड़ो……… बचाओ!
समूह को इकठ्ठा होते देर नही होती । लोग दौड़े आये सभी ने तुझे ही आरोपी ठहराया । न्याय के लिए राजसत्ता की परवाह किये बिना तेरे हाथ काट दिए तथा तुझे यहा फेंक दिया ।
तेरे भाई ने पिछले जन्म में बकरी को मारा था इससे वह यंहा बेमौत मरा । उस समय तूने बकरी के कान पकड़ कर रखे थे इसलिए तेरे हाथ काटे गये । बकरी के जिव ने इस तरह से बदला लिया ।
– सन्दर्भ ग्रन्थ : जनक तथा परिमल ।