सौराष्ट का चोटीला यानि बडा गाँव तथा छोटा शहर।
वि.सं. १२५२ में पूर्वाचार्य देवसुरी महाराज वहाँ चातुर्मास में रहे थे । राजशाही का यह समय । शहर के मंत्री का नाम नाहड और उनके छोटे भाई का नाम सालिग। दोनों भाईओ को सूरिदेव ने प्रतिबोधित किया। कुटुंब – परिवार के पाँच सौ सभ्यों के साथ उन दोनों ने जैन धर्म स्वीकारा ।
देखते ही देखते आषाढ़ महिने के दिन आये। आषाढ़ शुदि नवमी के दिन दोनों भाइयों की भृकुटियाँ चिंता से खिंची जाने लगी।आचार्य भगवंत के सामने वे परिवार के साथ खडे हो गये ।
साहेब! हमारी कुलदेवी चामुंडा है। हर वर्ष विजयादशमी को वह। भैस का बलिदान माँगती है ।
अब क्या करेंगे ।
चिंता मत करो ।
दशमी कल है । तुम्हे कल प्रभात के समय समाधान मिल जायेगा।
आचार्य भगवंत ने मंत्र शक्ति से चामुंडादेवी को खुद के पास हाजिर किया।करुणा से भरे वचनों से प्रतिबोध किया कि हे भाग्यशालिनी!तेरा पिछला भव याद कर और आज की तेरी दुर्दशा को समझ ले ।
तू पिछले भव में इसी शहर में जैन श्राविका का जीवन जिनवाली स्री थी। धनसार शेठ की पुत्रवधु!हर महिने शुक्ल पक्ष की पँचमी को उपवास करती थी । एक बार उपवास के पारणे मंदिर जाने को तू तैयार हुई । नई -कोरी साड़ी पहनी । इस समय तेरा छोटा पुत्र भी दौड़ा। पुत्र को नजर अंदाज करके तू निकल गई। तेरे पीछे तेरा पुत्र भी दौड़ा। साडी की घुंघरीओ की आवाज से एक भैसा भड़का । तेरी तरफ दौड़ा । बीच में तेरा पुत्र था । वह पाड़े की चपेट में आ गया । क्रूर बुध्दि के भैंसा ने तेरी तरफ की दुश्मनी का बदला तेरे पुत्र के साथ लिया तथा उसे कुचल दिया । उसी समय वह मर गया।
पुत्र की ऐसी कातिल मौत से तू इतनी प्रभावित हुई कि चित्कार करती हुई तू भी वहीं मर गई । मरकर तुम चामुंडा के रूप में उत्पन्न हुई है। पिछले जन्म में भैंसे ने तेरे पुत्र को मारा था । इससे तुझे भैंस की समग्र जाति की तरफ घृणा हो गई और बारबार भैंसाओ की बलि ले रही हो।
देवी, अब समझ ,शांत हो जा ।ऐक पाडे की गलती के कारण हजारो भैंसाओ को मौत के मुख के कैंसे धकेल सकते है? हिंसा का यह तांडव खेलना बंद कर ।
भगवंत, आपकी बात सच है ऐसा मैं स्वीकार करती हूँ। फिर भी अब भैंसो की हिंसा बंद नही कर सकती क्योंकि अब मेरी आत्मा बहुत भारे कर्मी बन गयी है। भव परिवर्तन तो हुआ ,भाव भी परिवर्तित हो चुके है ।
अगर ऐसा है तो कम से कम नाहडमंत्री के कुटुंब को तू छोड दे ।
सूरीदेव की इतनी बात तो मानने पर ही छुट्टी थी , इससे तथास्तु कहकर देवी अंतर्धान हुई।
आज भी सौराष्ट में यह चामुंडा देवी पूजी जा रही है । मिथ्यात्व तथा हिंसा का जहर फैलाती रहती है। मोह से अंध बनी हुई मन की वृत्तियाँ ऐसे भयानक अनर्थ पैदा कर देती है जिनकी आग लाखों वर्षो तक लाखो को जलाती ही रहती है।
-सन्दर्भ ग्रंथ: उपदेश सार: ।