Archivers

अवंति सुकुमाल का पूर्व जन्म

सिर्फ पांच छ घंटो के लिये संयम का पालन करके सीधे पाँचवे देवलोक में पहुँचनेवाले एवंतिसुकुमाल का पिछला भव पापकर्मो के त्याग की प्रेरकगाथाओ से लिखा हुआ है। अवंतिसुकुमाल का यह पिछला भव, उत्थान की लंबी परंपरा के बीज में पापो का त्याग समाया हुआ है इतना समझाता जाता है।

अवंतिसुकुमाल की आत्मा पिछले तीसरे जन्म में मछुआरे की जिंदगी व्यतीत कर रहा था। भरतक्षेत्र का श्रीपुरनगर उसका निवासस्थल । हिंसा तथा अधर्म से भरे हुए मछुआरे के जीवन में कही भी शांति नही थी। संपत्ति इकट्टा करने के लिये दिन-रात एक करने के बावजूद भी संपत्ति की छाया भी देखने को नही मिलती थी । इतना कम पड़ा हो वैसे पत्नी भी क्रूर स्वभाववाली मिली।घर में जब संपत्ति नही होती तब खानदान स्त्रियों का स्वभाव ज्यादा नम्र बनता है तथा झगड़ालु स्त्रित्रो का स्वभाव और खील उठता है। यहाँ भी ऐसा ही बना ।

एक रात को पत्नी ने घोर तिरस्कार करके मछुआरे को घर के बाहर निकाल दिया। ‘पैसे लिये बिना आओगे तो घर में पाँव नही रखने दूँगी । स्त्री ने दिखाया हुआ यह मिजाज था । पत्नी से थरथर कापता मछुआरा मछली पकडने की जाली लेकर बाहर निकला । रात का चौथा प्रहर तब शुरू हो चूका था, फिर भी अंधकार का आवरण घिर चुका था।नदी तरफ जाते हुये इस मछुआरे को किसी आसरे की अपेक्षा थी। वही उसकी नजर एक वृक्ष के नीचे काऊसग्ग कर रहे जैन मुनि पर पड़ी । शांति का भूखा यह मछुआरा महात्मा के चरणों में वंदन करके बैठ गया।

महात्मा ने काऊसग्ग पूरा किया । समझते देर नही लगी कि आनेवाला आगुंतक दुःखीत आत्मा है। मछुआरा है। मछुआर के प्रति की अकारण करुणा से मुनिवर का दिल छलक उठा। मध जैसी मीठी वाणी में उन्होंने मछुआरे को अहिंसा का उपदेश दिया। हिंसा की सर्वतोमुखी विनाशकारिता सुनते -सुनते मछुआरे की आँखों से आँसू की धारा वह निकली । हिंसा के प्रति उसे सचमुच नफरत हुई फिर भी संपूर्ण हिंसा का त्याग उसके लिए असंभव था। अंत में उसने यथाशक्ति नियम स्वीकारा की रोज जल में जो मछली पहले पकडी जायेगी वह छोड दूँगा।
महात्मा के श्रीमुख से इस तरह का अभिग्रह ग्रहण करके वह खुद के जीवन को धन्य मानने लगा।प्रभातकाल हुआ तब मछलियाँ पकडने के लिए नदी किनारे पहुँचा। जाल में जो मछली पहले आई उसे छोड़ दिया। दूसरी बार जाल बिछाया । पहली बार पकड़ी हुई मछली ही पुनः जाल में आयी। मछुआरे ने उसे छोड़ दिया । तीसरी-चौथी बार भी ऐसा ही हुआ। मछुआरे के लिए यह एक आश्चर्य था। फिर भी उसने प्रामाणीकता नही छोड़ी । कोई भी जाँचनेवाला न होते हुये भी वह स्वीकारी हुई प्रतिज्ञा के प्रति वफादार रहा।

सचमुच इस नदी का अधिष्ठायक देवता इस मछुआरे की परीक्षा कर रहा था। मछली का रूप धारण करके देवता स्वयं आ रहा था। चार – पाँच बार एक ही मछली आने के बाद मछुआरे ने उसी मछली के छोर पर कौडी बाँध दी। जिससे वापिस भी अगर यही मछली पकडी जाये तो भी उसको पहचानना आसान हो जाय।

शाम तक मछुआरे ने अलग-अलग जगहों (किनारों) पर जाकर जल बिछाया परंतु आश्चर्य,नयी एक भी मछली नही आई।हर बार एक ही मछली पकड़ी जाती तथा उसे यह मछुआरा छोड़ देता।
शाम को वह मछुआरा घर वापिस लोटा। जैसे की राह देखती बैठी हुई पत्नी ने देखा की पैसे हो नही आये , आज पेट भर सके इतना खुराक भी नही लाये। उसके क्रोध की सीमा नहीं रही । पति को अपमानित करते वह नृन्हि शरमाई। तिरस्कार से धुला हुआ मछुआरा घर में तो प्रवेश भी नही कर सकता था। अंत में मुनिराज के पास पहुँचा । बीते हुये कल की अपेक्षा आज मछुआरे का ह्रदय ज्यादा पिघला हुआ था। इसलिए महात्मा ने उसे सम्यक्त्व का स्वरूप समझाया । पाँच अणुव्रतों की महिमा समझाई। अत्यंत उल्लास के साथ उसने सम्यक्त्व के साथ अणुव्रत स्वीकारा। इस समय जन्म से चला आ रहा गरीबी का दुःख तथा शादी से लगाकर भोगा हुआ स्त्री के दुष्ट स्वभाव का दुःख भी वह भूल बैठा । मांसाहार – रात्रिभोजन वगैरह पापो का उसने त्याग किया। जीवनपर्यंत दरिद्रता भोगी । फिर भी सम्यकत्व तथा स्वीकारे हुये अणुव्रतों पर कभी भी आंच नही आने दी।

दृढ़तापूर्वक व्रत पाले। मृत्यु पाकर पाँचवे देवलोक के ‘नलिनिगुल्म’ नामक अत्यंत समृद्धिशाली विमान में वह उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्यवन पाकर अवंति नगरी में भद्रामाता का पुत्र बना । क्रमशः शालिभद्र जैसी सम्रद्धि प्राप्त की। सात मंजिल की हवेली में३२ पत्नीओ के साथ वह निरंतर क्रिड़ामग्र रहता था।

एक बार युगप्रधान , आचार्य श्री आर्यसुहस्तिसुरिश्वरजी महाराज पाँच सौ साधुओं के साथ उसकी हवेली के ground floor में पधारे। रात के समय आचार्य भगवंत ऐसे सूत्रों का स्वाध्याय कर रहे थे जिनमें नलिनिगुल्म विमान के वैभव का वर्णन किया हुआ है। इस स्वाध्याय के शब्द सुनकर अवंतिसुकुमाल को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। सातवे मंजिल से उतरकर वह सूरिजी के समक्ष आया । रात होने से सूरिजी ने जब दीक्षा नही दी तब खुद ही दीक्षा ग्रहण की। गुरुभगवंत की आज्ञा प्राप्त करके स्मशान में जाकर अनशन किया। एक सियारीन ने अपने परिवार के साथ इस महामुनिवर के ऊपर उपसर्ग किया। उनके शरीर को फाड़कर खाया। फिर भी उपशम में स्थिर बने हुए अवंतिसुकुमाल थोड़े भी विचलित नही हुये। समतापूर्वक प्राण त्यागकर उसी रात को वापिस पाँचवे देवलोक के नलिनिगुल्म विमान में पहुँच गये।

-संदर्भ ग्रंथ : उपदेशसार – २९

शत्रुघ्न का पूर्वजन्म
May 5, 2018
विशल्या का पुर्वजन्म
May 5, 2018

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Archivers