मानव के पास क्या है उससे नही बल्कि मानव क्या है उससे उसकी कीमत लगती है। मानव के लाॅकर मे भले ही कितने भी रूपये पडे हो मगर उसके दिल मे उदारता नही होगी तो उस रूपए की कीमत कोडी की है। जिस मानव के पास one time का खाना ही हो पर उदारता हो तो मानव महान बन जाता है। मानव से भी ज्यादा मानव के व्यवहार का मूल्य होता है। मानव अगर उसके व्यवहार मे उदारता नही दिखाएगा तो लोग उसकी ओर देखेंगे भी नही। क्योंकि इन्सान पैसो से नही उदारता से मापता है।
मानव का वर्तन, मानव का व्यवहार, मानव की अनुकम्पा, मानव की उदारता ही महानता की सीढी है। मानव की महानता मापने की स्केल अगर कोई होतो वह उदारता है। उदारता की स्केल ही इन्सान की दुनिया के अंदर ऊँचाई माप सकते है। उदारता से ही उसका कद दुनिया के सामने आ सकता है। बिना धन के भी दुनिया मे कई महान बने है। परंतु दुनिया मे एक भी महान ऐसा नही है जो बिना उदारता के अपना वजूद दुनिया के सामने रख पाया हो। उदारता मानव का सच्चा वैभव है। उदारता का Bank Balance जितना जबरदस्त होगा मानव को दुनिया से उतनी ज्यादा क्रेटीट भी मिलेगी।
उदारता की धन दौलत से ही मानव धनवान गिना जाता है। बाकी पैसे हो और उदारता न हो वह लक्ष्मीवान बन सकता है। धनवान नही धनवान बनने के पहले पैसे से ज्यादा उदारता की आवश्यकता होती है। क्योंकि पैसे के अभाव मे उदारता आ सकती है पर उदारता के अभाव मे कदापि पैसे नही आ सकते है।मानव की प्रतिष्ठा वो दुसरा कुछ भी नही only for उदारता के गुणगान है। मानव की निष्ठा उसकी उदारता मे बैठी होती है।
हर एक अच्छे कार्य मे उदारता के छिटे होते है। अगर हमने जीवन के हर कार्य मे उदारता रूपी तोरण बाँधे है, उदारता से जिंदगी के हर प्रसंग का श्री गणेश किया होतो मंगलमय रूप से दुनिया मे प्रकाशित हो जाते है।
मन के घोसले मे रहती दया यानि उदारता अभिमान और उदारता मे ३६ का अकडा है। यह दोनो कही पर भी साथ मे नही रह सकते है। और जिस इन्सान को पैसे, सम्पत्ति और सत्ता का अभिमानो जाता है वह इन्सान कभी भी उदार नही बन सकता है।
जिसने उदारता का श्रृंगार कर लिया हेता है वह
स्वतः दुनिया के सामने निखर के आ जाता है।।