सुख और सम्बन्ध बहुत ही अट पटी चीज़ है। इंसान जीवन भर कुछ करता है पर किस लिए करता है ?? तो सुख के लिए यह जवाब मजदुर से लगाकर मालिक तक सभी यही करेगे।
एक गुरु ने अपने 10 शिष्यो से यह प्रश्न किया की सुख यानि क्या है? तुम्हे कब सुख का अनुभव होता है?? शिष्यो में एक राजकुमार था। मुझे जब मेरे दुश्मनो पर जीत मिलेगी तब सुख का अनुभव करूँगा। एक साधू का पुत्र था सारे शास्त्रो का ज्ञान अर्जन करूँगा तब मुझे सुख मिलेगा। सारे शिष्यो ने सुख की अलग व्याख्या की। सभी ने ऐसे अलग माप दण्डो से नापा था।
इनमे से एक ने सही जवाब दिया। मै तभी सुखी बनूँगा जब में सुख का एहसास करूँगा। इंसान को इसकी अनुभूति होना चाहिए की मै सुखी हु।
जीवन में कभी सफलता ही सुख नही देती है। अमेरिका में सफलता को प्राप्त किये हुए अनेक लोगो का सर्वे किया गया था। खुद के क्षेत्र में यह सफलता के शिखर पर बेठे लोगो से जब पूछा की आप सुखी है?? तो ज्यादा तर लोगो ने जवाब था नही, थोड़े लोगो का answer था वह बड़ा बेतुका विचित्र था उन्होंने कहा पता नही।
जब सुख का मतलब ही ना समझाये तो फिर सुख का एहसास कहा से होगा। एक नवयुवक ने बड़ी सही बात को share किया। मै सफलता के पीछे पागल था। मैंने fix किया की कैसे भी करके मुझे सफल होना है। रात दिन मेहनत करना मैंने जारी रखा।
पत्नी की ओर भी मै पूर्णतः बेदरकार बन गया था। मित्र से भी दूर हो गया था बस मै सफलता पाने में मशगूल हो गया था। परिणाम यह आया की पत्नी डाइवोर्स लेकर चली गयी, मित्र भी छोड़ गए। एक दिन सफलता का सूर्य तो उगा पर उस समय मेरे साथ कोई भी नही था। मै अकेला था।
एक दिन मुझे एक मित्र मिला । मैंने उससे पूछा की मेरी सफलता पर मेरे लिए ताली बजाने वाला कोई नही है ऐसा क्यों हुआ?? उसने कहा जो लोग तेरी सफलता पर ताली बजाने वाले थे उन सब को तू बहुत पीछे छोड़ कर आ गया है।
याद रखना जीवन में दुःख को अकेले सहन किया जा सकता है। पर सुख के लिए तो साथीदार चाहिए। जिसके पास साथीदार है उसे कभी भी दुःख भयावह नही लगता है। क्योंकि उसके पास दुःख में आँसू पूछने के लिए और सुख में पीठ थपथपाने के लिए साथियों के हाथ है। और जिसके पास साथी नही होते वह दुनिया का सबसे बड़ा दुखी मानव है।
“साथियो का साथ लेकर सुख के शिखरों को जीते”