शान्त सुधारस, भवभावना जैसे शास्त्रो मे शास्त्र कारो ने 16 भावनाओ का वर्णन करा है। इसमे शुरुआत की 12 भावना स्वयं के लिए है। जबकि अन्त की 4 भावना जगत के लिए है। इन 16 भावनाओ से आत्मा को रोज भावित करना चाहिए। 16 भावना आचरण मे आजाए तो आत्मा परमात्मा बन सकती है। तो चलो इन 16 भावनाओ को एक- एक वाक्य मे समझते है।
प्रथम अनित्य भावना- यह जीव को समय की मर्यादा का भान कराती है।
दुसरी अशरण भावना- यह हमे शक्ति की मर्यादा का भान कराती है।
तीसरी संसार भावना- यह हमे वास्तविकता का ख्याल कराती है।
चोथी एकत्व भावना- यह हमे आत्मा के स्वरूप को बताती है।
पाँचवी अन्यत्व भावना- यह जगत के रूप को बताती है।
छट्ठी असुचि भावना- देह के स्वरूप का भान कराती है।
सातवी आश्रव भावना- कर्म के आने के रास्ते को बताती है।
आठवी संवर भावना- कर्म को रोकने के मार्गो को बताती है।
नवमी निर्जरा भावना- कर्म को आत्मा मे से निकलने के रास्ते बताती है।
दशमी धर्म भावना- धर्मराज का वर्णन करने मे आया है।
ग्यारमी लोक स्वरूप भावना- इसमे जड और चेतनमय 14 राजलोक का वर्णन बताया है। जो सम्पूर्ण लोक का भान कराता है।
बारमी बोधिदुर्लभ भावना- यह भावना सम्यग्दर्शन आदि की दुर्लभता का भान कराती है।
तेरमी मैत्री भावना- यह भावना जीवन मे से दुश्मनी को दुर करती है।
चौदहमी प्रमोद भावना- यह हमारे जीवन मे से ईर्ष्या तत्व को समाप्त करती है।
पंद्रह करूणा भावना- यह हमारे ह्रदय की कठोरता को कोमलता मे बदलती है।
सोलह मध्यस्थ भावना- यह हमारे जीवन मे से तिरस्कार भावो को खत्म कर देती है।
यह सोलह भावना
निर्धन के लिए अक्षयनिधी
रोगी के लिए औषधी
दुःखी के लिए सुख का कुम्भ
पापी के धर्म का कल्पद्रुम है।
बस तो इन 16 भावना को अंगीकार कर के भवो का भागाकार कर सिद्धगति को प्राप्त करे बस यही मंगल कामना।।