लगभग हर क्लेश का बीज स्त्री बनती है या संपति बनती है तथा हरेक को धर्मप्राप्ति का बीज प्रायः गुरु बनते है। इस वास्तविकता से रावण , लक्ष्मण तथा सीता की भावयात्रा किस तरह से अलग हो सकती है?
सीता के निमित्त से रावण तथा लक्ष्मण के बीच से इस भव में जैसे प्रचंड क्लेश हुआ वैसे ही पिछले जन्मों के अनेक जन्मो में भी हुआ है । सर्वत्र क्लेश का कारण सीता ही बनी तथा क्लेश रावण तथा लक्ष्मण के पक्षो में बिच में हुआ । यहाँ आश्चर्य तो यह है कि लक्ष्मण सर्वत्र सीता की रक्षा के लिए लड़ रहा था तथा रावण सीता की प्राप्ति के लिये।
उनकी रोमांचक भवयात्रा की तरफ थोड़ी नजर करे और उसमें से कुछ प्रेरणा प्राप्त करे । शास्त्रो में इन तीनो की जो भव परंपरा मिलती है वह बहुत विस्तृत हे। उनमे से कुछ चुनी हुई कथाएँ यहाँ वर्णन करते हैं।
इसी भरतक्षेत्र में असंख्य वर्षो पहले क्षेत्रपुर नामक नगर था । उनमे सागरदत्त नामक श्रेष्ठि रहता था । उनकी पत्नि का नाम रत्नप्रभा । पुत्री का नाम गुणवती। गुणवती यानि ही सीता की आत्मा । गुणवती सच में ही गुणवान थी । विनय तथा लज्जा की जैसे मूर्ति देख लो ।
गुणवती जब जवान बनी तब उसके पिता ने उसकी सगाई इसी नगर के धनदत्त नामक श्रेष्टिकुमार के साथ निश्चित की । दूसरी तरफ गुणवती की माता रत्नप्रभा बहुत लचीली थी । उसने इसी नगर में एक श्रीकांत नामक धनवान रहता था। वह धनदत्त की अपेक्षा अधिक धनवान था , इससे श्रीकांत को गुणवती देने का निश्चय किया ।
रत्नप्रभा की यह गुप्त योजना थी । जिसकी खबर पुरोहित को मिली । पुरोहित का नाम यज्ञवल्क्य यह पुरोहित पहले धनदत्त का मित्र था। गुप्तराह से जो छलखपट हो रहा था उससे वह उबल गया तथा धनदत्त के छोटे भाई को पूरी जानकारी दी।
धनदत्त तथा वसुदत्त के बीच में बहुत भ्रातृ प्रेम था । खुद के बड़े भाई के साथ जिस कन्या का विवाह निश्चित हुआ है उस कन्या को श्रीकांत ले जाये यह उसे कैसे भी मंजूर नही था।
अब तो निश्चित जानकारी मिली की गुणवती का विवाह धनदत्त के साथ हो उसके पहले श्रीकांत उसे गुप्तरूप से ग्रहण कर लेगा। कन्या के माता की ही यह game थी। वसुदत्त ने निश्चित किया कि मेरे बड़े भाई की प्रेयसी को श्रीकांत के हाथ में कैसे भी नही जाने दूँगा, वह समझता क्या है?
वसुदत्त क्रोध से तिलमिला उठा। क्रोध से जलता हुआ वह श्रीकांत के घर में घुस गया। तलवार के जोरदार झटको का वर्षाव करके श्रीकांत को यमलोक पहूँचा दिया । श्रीकांत ने भी प्रतिकार किया था । मरते-मरते उसने एक ऐसा उग्र प्रहार किया जिसे वसुदत्त सहन नही कर सका । श्रीकांत के पीछे वह भी यमलोक में पहुचा ।
वे दोनों विंध्याचल के जंगल में हिरन के रूप में पैदा हुए। गुणवती भी कुमारी की अवस्था में मोत के शरण में गई। वह इसी जंगल में हिरनी के रूप में पैदा हुई । वहाँ पर भी हिरन बने हुये श्रीकांत तथा वसुदत्त ने हिरनी बनी हुई गुणवती के लिये खूंखार युद्ध किया। दोनों मर गये । यही परंपरा अनेक भवो तक चली । तिर्यंच के अनेक अवतार इस तरह से उसने व्यतीत किये।
बहुत समय बीत गया उसके बाद वह श्रीकांत मृणालकंद नाम के नगर में राजकुमार बना। वज्रकंठ ऐसा उसका नाम पडा। शंभू राजा का यह पुत्र समय बीतते राजा बना।
दूसरी तरह उस वसुदत्त की आत्मा इसी नगर में श्रीभूति नामक पुरोहित बनी । उसे एक पुत्री हुई । उसका नाम वेगवती । यह वेगवती यानि अन्य कोई नही, उस गुणवती का ही जीव।
कोई शुभ निमित्त पाकर श्रीभूति पुरोहित ने जैन मत स्वीकारा।शुद्ध सम्यक्त्वधारी श्रावक बना। वेगवती में भी ऐसे ही संस्कार पड़े । किसी अवसर पर राजा वज्रकंठ ने वेगवती को देखा । देखते ही वह कामातुर हो गया । पूर्वजन्म के संस्कार थे ना?
उसने श्रीभूति के पास वेगवती की माँग की। परन्तु श्रीभूति ने इस मांग को साफ अस्वीकार कर दिया। राजा ने उसे जब माँग स्वीकारने के लिए बहुत प्रलोभन देना चाहा तब उसने प्रलोभन तो न स्वीकारा, ऊपर से स्पष्ठ सुना दिया की मेरी पुत्री मिथ्यात्वी को तो नही दूँगा।
राजा श्रीभूति के ऊपर बहुत क्रोधित हुआ। श्रीभूति को उसने बहुत मारा,प्रताड़न की वेदना के चलते वह मृत्युशरण हो गया। इसके बाद लाचार बनी हुई तथा पिता के विरह से रोती – बिलखती वेगवती को वह खुद के भवन में ले गया तथा उस पर बलात्कार किया।
वेदवती की सीमा न रही। दु:खी हुई उसने वज्रकंठ को शाप दिया कि , याद रखना, राजन , आज भले ही तुमने यह अकार्य किया, भवान्तर में मैं ही तुम्हारे वध का कारण बनूँगी ।
वेगवती राजा को नफरत करती थी । यही वेगवती मिथिलानगरी में जन्मी जनक राजा की पुत्री बनी। सीता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
वह श्रीभूति , बिच में कितने ही भव करके दथरथ राजा के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। लक्ष्मण के रूप में जन्मा तथा वह वज्रकंठ राजा, दूसरे कितने भव पूर्ण करके रावण बना।
पहले गुणवती के लिए लड़नेवाला श्रीकांत तथा वसुदत्त इसके बाद वेगवती के लिए परस्पर विरोध रखनेवाला वज्रकंठ तथा श्रीभूति,यहाँ सीता के लिए रावण तथा लक्ष्मण बनकर बेहद लड़े । सीता द्वारा पिछले जन्म से शापित बना हुआ रावण अंत में इसी तरह मारा गया जैसे सिताने शाप दिया था।
अंत में यह कहना चाहिये कि सीता इस शंड़खला के पहले भव में जिस धनदत्त की पत्नी बनी थी वही धनदत्त बिच में ‘ पद्यरुचि’ सेठ का भव करके उसी तरह दूसरे भी थोड़े भव करके राम के रूप में पैदा हुये। धनदत्त का शुभेच्छुक वह याज्ञवल्कव पुरोहित वहाँ विभीषण के रूप में जन्मा। आखिर सीता तो राम को ही मिली।
-आधारग्रंथ-त्रि.श.पु. (पघ)