क्षेमंकरसेठ के पुत्र का नाम दुपसार । जैसा नाम वैसा ही गुण । उसके समग्र शारीर में से सुमधुर सुगंध सतत प्रसारित होती थी । दुनिया का कोई धुप जैसी सुगंध न दे सके , वैसी लीज्जत भरी यह सुगंध थी । जन्मते ही उसके शरीर का यह अतिशय था । पूण्य की कोई गजब राशि साथ में लेकर वह आया होगा ।
जो कोई कुमार को या कुमार के वस्त्रो को मिल लेता तो मिलने वाले के वस्त्रो में से भी घड़ियों तक मस्त सुगंध प्राप्त होती थी । बात धीरे – धीरे गांव में फ़ैल गयी इसलिए कुमार को मिलने के लिए लोगो की लाइन लगने लगी ।
बात फैलाती फैलती राजा के कानों तक पहुंची पहले तो राजा ने इस बात को सच ही नही मणि । परन्तु जब कुमार का स्पर्श करके आये हुए लोग राजा के सामने खड़े रहे तथा उनके वस्त्रो में से भी सुगंध का अनुभव होने लगा तब स्वीकार किए ही छुट्टी थी ।
राजा ने क्षेमंकरसेठ के पुत्र को हाजिर होने की आज्ञा दी । कुमार हाजिर सच कहना की कौनसी गंध पूड़ियों का उपयोग करके तू इतनी ज्यादा सुगंध फैलाता है ? कहा से प्राप्त की वे गंध पुड़िया ? राजा ने पूछा ।
स्वामी ! यह तो मेरे शरीर की स्वभाविक सुगंध है । एक भी गंध द्रव्य का विलेपन में करता नही । कुमार ने नम्रता से उत्तर दिया ।
इतने समय में तो राजा का नाक भी कुमार की सुगंध से तरबतर हो गया ।कुमार का ऐसा प्रभाव देखकर राजा के मन में ईर्ष्या सुलग उठी मेरे नगर में मुझसे ज़्यादा प्रभावशाली व्यक्ति नही एहन चाहिए!
राजा ने सेवको आज्ञा की की कुमार को राज्यसभा के बहार खड़ा करो । उसे पकड़कर उसे पुरे शरीर पर विष्टा का विलेपन करो , जिससे उसके शरीर की सुगंध चली जाए ! जी महाराज!
राजसेवको में बुद्धि ही कहा होती है ? उन्होंने राजाज्ञा का अमल किया । कुमार को मजबूती से पकड़ रखा तथा उसके शरीर पर विष्टा लगाने लगे । उस समय कुमार के पिछले जन्म के मित्र देव वहा आ पहुचे । कुमार की ऐसी भयंकर भत्सर्ना देखकर वे आग बबूला हो गए राजसेवको ने जैसे ही विष्टा लगाने की शुरुआत की उसके साथ ही उन देवो ने कुमार के शरूर पर प्रचंड सुगंध युक्त पानी बरसाना शुरू किया । और ज़्यादा , दैवी पुष्पो की भी वर्ष्टि करने लगे।
विष्टा की दुर्गंध कहि पीछे रह गई । देवी जल के कारण कुमार के शरीर में से पहले से भी अधिक सुगंध फेलने लगी ।
ऐसा प्रत्यक्ष चमत्कार हजारो प्रजाजनों ने नजरो के सामने देखा। इससे वे सबकुमार का जयघोष करने लगे। देवी चमत्कार से राजा भी घबराया । कुमार के चरणों में झुककर उसने माफी माँगी । विष्टा दूर करवाई । अब, राजा को कुमार के लिए आंतरिक स्नेह प्रगटा ।
इस समय नजदीक के बगीचे में कोई केवलज्ञानी भगवंत पधारे । राजा सेना को साथ लेकर उन्हें वंदन करने निकला। राजा के पीछे प्रजा भी चली । केवली भगवंत का व्याख्यान सुनकर राजा ने प्रश्न किया , भगवंत! इस श्रेष्ठीपुत्र ने ऐसा कोनसा पूण्य ऊपार्जित किया है जिससे उनके शरीर में से ऐसी दिव्यसुगंध फैल रही है?
दूसरा प्रश्न: मेरे साथ ऐसा कोनसा अशुभ ऋणानुबंध बांधा होगा की मुझे उनके शरीर पर विष्टा लगाने की इच्छा हुई, उसका अमल भी हुआ।
राजन!उसका कारण कुमार के पिछले जन्म में छुपा हुआ है।
पूर्व के तीसरे भव में तुम दोनों पिता-पुत्र के संबन्ध से बंधे थे। तू राजा था और वह तेरा राजकुमार । राजकुमार किसी शुभ निमित्त को पाकर जेनशासन तक पहुचा । अरिहंत के प्रति उसे अविचल श्रद्धा प्रगटी । उसने रोज धुप-पूजा करने का अभिग्रह किया। प्राणांते भी उसने अभिग्रह को तोड़ा नही । उत्तम धुप से वह रोज प्रभुपूजा करता। धूपपूजा करते समय उसका ध्यान भक्ति से अत्यंत कोमल बन जाता।
इस सुकृत द्वारा उसने पूण्य बाँधा । जिसके प्रभाव से इस भव में वह जन्मा तभी से उसके शरीर में से सुगन्ध फैल रही है।
पिछले जन्म से तुम पिता-पुत्र कीसी कारणवश परस्पर दुश्मन बन गये ।
बात बहुत बढ़ गई तथा सगे पिता-पुत्र ऐसे तुमने युद्ध खेला । युद्ध में राजकुमार ने राजा की सेना को जित लिया। तू हारा , जवानी के नशे में अंधे बने राजकुमार ने तुझे पकड़वाया । रणमेदान में सेनिको द्वारा तेरे शरीर के ऊपर अशुचि लगवाई। उसके बाद तुझे छोड़ दिया।
इस समय तू पिता था तो भी तुझे पुत्र के प्रति तीव्र घृणा हो गई । कुमार ने यह अकार्य करके बहुत अशुभ कर्म बाँधा ।
इस अशुभ कर्म का उदय हुआ, इसलिये कुमार के शरीर पर विष्टा लगाने में आई। पूर्वबध्द वेर का अनुबंध था इसलिए तुझे भी कुमार के लिए ऐसा कुविचार जागा।
केवली भगवंत का व्याख्यान सुनकर पूर्णचन्द्रराजा को रोमांच हो गया। धूपसार कुमार को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। दोनों को वैराग्य जागा। दोनों ने केवली भगवंत के पास संयम गृहण किया।
-संदर्भ:कवि उदयरत्नजी कृत ‘अष्टप्रकारी पूजानो रास’