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रात्री भोजन और जमीकंद का त्याग

“सभी जैन भाई,बहन”

मुसलमान लोग कहते है,की हमारे धर्म मे जो माँसाहार ना करे वो मुसलमान नही इसलिए हम माँस खाते है।

सिक्ख लोग भी यही कहते है।

ईसाइ धर्म के लोग भी धर्म का वास्ता देकर यही कहते है।

और हमारे जैन भाई बहन हमेशा यही कहते हुए मिलते है की हमारे धर्म मे तो आलु,प्याज,लहसुन और सारे जमीकंद ही निषेध है।

हमारे धर्म मे तो रात्री भोजन का भी त्याग है।

पर वही लोग जब आलु ,प्याज, लहसुन और रात्री भोजन आदि खाते दिखाई देते है तो सोचीये हम स्वयं अपने धर्म का कीतना आदर करते होंगे।
सोचिये जिस धर्म मे रात्री भोजन एवं जमीकंद का त्याग हो आज उसी समाज के लोग रात्री मे शादीया कर रहे है और पत्रीका मे बढ़ी शान से लिखते है की रात्री भोजन त्यागी सूर्यास्त्र पूर्व आमंत्रीत है।

*क्यो हम दिन मे शादी के विकल्प पर नही जाते है?*

हद तो जब हो जाती है जब जैन खाना खाने वालो का मात्र एक स्टाल और बाकी सारे जमीकंद खाने वालो के स्टाल।

*वाह रे जैनीयो थोड़ा तो इस उत्कृष्ट कुल की मर्यादा रखो।*

क्या आपको यह पता है? की चिड़ीया,कबूतर,कौआ आदि पक्षी भी रात्री मे भोजन नही करते है उन्हे तो कीसी ने उपदेश नही दिया।

जो जैन लोग कभी अपने धर्म के प्रति कटृरता और अंहिसा के लिए जाने जाते थे आज वे लोग बदलते समय के साथ इस प्रकार अपने जैनत्व को इतना गिराते जायेंगे ये तो कभी किसी ने सोचा ही नहि होगा।

अब आप कहेंगे की क्या करे दूसरे लोग जैन भोजन नही पसंद करते है इसलिए रखना पढ़ता है।

अरे हम क्यो कीसी की पसंदानुसार उसे खिलाए जैसा हम खाते है वेसा ही उन्हे भी खिलाए।दरसल हम खुद ही जब ये जमीकंद पसंद करते है तो दूसरो का नाम लेकर क्यो झूठ बोलना।अगर कोई शराब की डीमांड करेगा तो क्या हम उसे शराब भी पिलाये या कोई नानवेज की माँग करे तो क्या हम उसे ये भी खिलाए।

*जैनी भाईयो अभी भी समय है अगर हम समझ गये तो ठीक है नही तो आने वाली पिढ़िया तो संस्कारहीन ही हो जायेगी।*

क्यो हम बच्चो के टिफीन मे आलू ही रखते है ।

क्यो हम बच्चो को कभी ये नही बताते की बेटा इसमे अनंत जीव है जो हमारे केवली भगवानो ने देखा और हमे भी बताया।

क्यो हम उन्हे मात्र 2 मीनट भी मंदिर जाने का उपदेश नही देते।

क्यो हम उन्हे हफ्ते मे एक दिन पाठशाला नही भेजते।

अगर आप वास्तव मे अपने नाम के साथ जैन लगाना पसंद करते है तो सबसे पहले जैन तो बन जाइए ।

अगर महावीर के कुल का कहलाने मे प्रसन्नता होती है तो पहले उनकी आज्ञा तो मानीए।

महावीर जन्म कल्याणक के जूलूस मे नारे तो सब लगाते है जियो और जीने दो पर इसका मतलब कोई नही जानता।
अनंत जीव रात्री भोजन और जमीकंद मे खा जाओ और फिर भी कहो जियो और जीने दो।

संसार मे भी हम सुपुत्र की उपाधी उसे ही देते है जो पिताजी का आज्ञाकारी हो, तो हम कृपया स्वयं को देखे की हम कहा है।
हम पिताजी को तो मानते है पर उनकी आज्ञा नहि मानते है। तो हम ही निर्णय कर ले की हम सुपुत्र है की कुपुत्र है।

संदेश पढ़ने के बाद अगर किसी की भावनाओ को ठेस लगे तो उसके लिए क्षमापर द्वेष करने से कुछ नहि होगा बात तो 100% सही है

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