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भारत को गर्व हैं नरेंद्र की कतर्वय निष्ठा पर

परिवर्तन वह समाज का नियम समय के साथ change आता हैं।

हर युग में परिवर्तन आता ही हैं। संसाधन speed से develop हो रहा हैं। वाहन से लगाकर व्यवहार सब विकसित हो रहे हैं। letter अब email में बदल रहे है। अब बड़े पर्दो पर रहने वाले श्रीमंतों को सरकार संस्था कम्पनी गाडियो के काफिले देने लगी है।

भारत की एक सुप्रसिद्ध संस्था की बात है। वहा एक कर्ताहर्ता को मोटर की सुविधा दी गयी। उसकी total सुविधा की व्यवस्था संस्था की तरफ से थी।

एक बार की घटना है। A to Z साधन उपलब्ध होने के बाद भी वह महानुभाव उनका उपयोग करने की बजाए रिक्शे में कही जा रहे थे।

रास्ते में एक मित्र की उनपे नज़र पड़ी और वह आश्चर्यचकित हो गए। वह दृश्य देखकर उन्हें लगा की यह जिस पद पर है , ऐसे जाना उनकी गरिमा के खिलाफ है ।

उनकी बात को यह मन में नही रख सके और उन्होंने रिक्शे को रोका । उनसे बात की और धीरे से अपने मन में उठती बात के लिए उन्होंने पूछा की आप अगर आज्ञा दे तो एक बात पुछु? अरे आपको संस्था की और से जो गाड़िया मिली है, उनका उपयोग क्यों नही करते हो ?

उन्होंने प्रश्न सुनकर शांति से जवाब दिया की भाई आपकी बात सही है मगर थोडा सा भेद है। मुझे गाडी आदि सुविधा मिली है। संस्था के उपयोग के लिए मिली है। मेरे स्वयं के कार्यो के लिए नही है। मै उसका उपयोग खुद के लिए करू तो समाज मुझे दोषपात्र नही गिनेगा।

परन्तु मुझे मेरी अंतरात्मा कभी भी माफ़ नही करेगी। तो भी मेरी इतनी कमजोरी है की कभी मै मेरे लिए उपयोग कर लेता हु यतो उसका पेट्रोल ख़र्च मै खुद चुकाता हूँ।

ऐसी जबरदस्त कल्र्वय निष्ठा देखकर मित्र का मन ‘जागृत हो गया ‘ और उन्हें भाव से नमन करने लगा।

यह बात कोई पुरानी विष्णुगुप्त चाणक्य के समय की नही है। यह बात है बनारस युनिष्सिटी के भुत पूर्व पूजनिष्ठ भुतपूर्व कुलपति आचार्य नरेंद्र देव की।

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