विश्वास अर्थात संबंधो का श्वास
विश्वास अर्थात संबंधो की आश
विश्वास मानव और मानव के बीच का सेतु है
ईश्वर और मानव के बीच का तन्तु है
विश्वास अंधकार मे दिखता सुर्य का किरण, किडी का कण है तो हाथी का मण ।
विश्वास स्नेह का आधार है तो विश्वास बिना सब निराधार।
विश्वास यानि कार्य का पाया और विश्वास यानि सृष्टी की छाया ।
विश्वास जीवन की शक्ति है विश्वास जीवन की भक्ति है। दुनिया मे विश्वास इश्वर है। विश्वास अल्लाह है । और विश्वास इसु भी है। विश्वास सुख भी है, समृद्धि है, वृद्धि भी है।
विश्वास वही जो पक्षी उसके पंख मे देखता है।
पति पत्नी एक दूसरे के साथ मे देखते है।
प्रेमी एक दूसरे की आँखो मे देखते है ।
एक बालक अपनी माँ की कोख मे देखता है ।
विश्वास जित है, विश्वास जीव भी है ।
विश्वास संबंधो का चंदन है विश्वास जीवन का इत्र है।विश्वास जिंदगी का अस्तर है ।
विश्वास वही है जिस पर समग्र दुनिया टिकी है। तो विश्वास वही है जिस पर समस्त मानव जाति अटकी है।
मानव को विश्वास पात्र एसे ही प्राप्त नही होते है। छोटी से छोटी विश्वसनियता पैदा करने के लिए बडे मे बडा तप करना पडता है। ऐसे बड़े बड़े तप के आधार पर एक बार विश्वसनियता प्राप्त हो जाती है। फिर वह विश्वसनियता चमत्कार करने की शक्ति धराती है।
हाँ जी हाँ विश्वास पात्र चमत्कारो का सर्जन कर सकता है। परन्तु चमत्कारो से विश्वास प्राप्त नही होता है।
श्री कृष्ण द्रौपदी के चिर को भरने के लिए आए तो यह चमत्कार भी द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण पर रखे विश्वास का ही चमत्कार था। इस दुनिया मे नकली चमत्कार तो कई होते है पर एक बार असली चमत्कार देखना हो तो विश्वास पात्रता तो पैदा करनी ही और वह पैदा होती है तप के द्वारा। मुझे एक घटना याद आ रही है- धर्मराज युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ करवाना था और वह थे सत्यवादी उनको व्यवहार की आटाघुटी और किचड को नही समझे राजसूय यज्ञ के लिए खूब धन की आवश्यकता पडी और उसके लिए उन्होंने अपने भ्राता भीम को कुबेर के पास भेजा। भीम ने कुबेर के पास धन माँगा तो कुबेर ने कहा कि मेरे एक सवाल का जवाब दो। अगर जवाब सही हुआ तो धन दूंगा नही तो नही।
भिम ने कहा जरूर पूछो।
कुबेर ने प्रश्न करा – तुम जिस आनन्द से मेरे पास से धन ले जा रहे हो, क्या कुछ समय बाद उसी आनन्द से वापिस लौटा दोगे?
भिम ने कहा- हाँ , मै उसी आनन्द से दे दूंगा। इसमे पूछने की क्या बात है?
कुबेर ने कहा तेरा जवाब गलत है। मुझे धन नही देना।
भिम खाली हाथ गया। युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन कुबेर के पास धन लेने गये। कुबेर ने अर्जुन से भी वही प्रश्न किया। उसने भी वही जवाब दिया। इसी तरह चारो भाई कुबेर के पास धन लेने गये और खाली हाथ लौटे। आखिर मे युधिष्ठिर स्वयं गये और कुबेर ने वही प्रश्न किया। युधिष्ठिर ने सोच विचार कर जवाब दिया- है कुबेर जी! देनदार साहुकार के पास रूपये लेते समय ऐसा ही आनन्द रूपये देते वक्त होगा या नही यह नही जानता परन्तु हसते हुए या रोते हुए, दुःख से या आनन्द से मै आपको यह रूपये वापिस दूँगा। क्योंकि जिस विश्वास से आप मुझे रूपये दोंगे, वह तोड़ने के लिए नही है इतना मै जरूर जानता हूँ। आप मुझे रूपये नही भरोसा दे रहे हो। मुझे यह भरोसा तोडे बिना वापिस करना है। सत्यवादी युधिष्ठिर के जवाब से खूश हो कर कुबेर ने सोनामोहर गिन कर के दे दिये।
इस बात का तात्पर्य इतना ही है कि जब किसी भी मानव के पास मे कुछ भी वस्तु लो तो वह मात्र वस्तु नही देता उसके साथ विश्वास भी देता है। तुम्हे उसे वस्तु वापिस करने के साथ विश्वास भी वापिस करना है।
किसी गुजराती कवि की चार पंक्तिया याद आ रही है –
विश्वास होय त्यां उजास होय छे।
विश्वास होय त्यां आशा होय छे।
विश्वास होय त्यां उल्लास होय छे।
विश्वास होय त्यां अजवास होय छे।।