मेरा जीवन एक बहुत बड़ा घर है इसमें बहुत सारे दरवाजे है उसमे से एक कान नाम का भी दरवाजा हैं।और इस दरवाजे के पास बहुत सारे लोग आ जाते है। और खूब गंदा करते है। वह सारी गन्दगी मेरे इस दरवाजे पर आ कर फेकते हैं।
कोई निंदा की थेलिया तो कोई दूसरो के दोषो के टोपले ला कर यहाँ फैक देते हैं। कोई यहाँ विकथा की एठवाड यहाँ पर ढोल के चले जाते हैं।तो दुसरो की पंचायत के पोटले यहाँ फैक देते हैं। तो कोई वासना की गन्दी वुष्टा भी फैक जाते हैं।
परन्तु इन सब में तो गलती मेरी थी जब वह सब लोग जब यहाँ फ़ेक कर जा रहे थे तो मैंने इसको यहाँ पर चला लिया। और मेरे जीवन में भयंकर गंदगी बड़ने लगी और मै भयंकर रूप से त्रासित हो गया।
यहाँ पर इतनी ज्यादा दुर्गन्ध हो गयी की माता फटने लगा इस भयंकर गंदगी के कारण राग, द्वेष, माया, छल, ईर्ष्या कपट आदि रोगों के जर्म्स मुझे घेरने लगे। और स्थती विकर हो गयी दुर्गन्ध जमती नही है गन्दगी सेहन होती नही है। अब मै इस वातावरण से बहुत ही परेशान हो गया हूँ।
मैंने इन सब कचरे को इकठा करके विस्मृत्ति की खाई में डाल दिया है। और इस गंदगी को जीवन में से क्लीन कर दिया है। पर इन दरवाजो पर जहाँ से यह सब गंदगी प्रवेश करती है उन दरवाजो पर मैंने एक दम कड़क सूचना लगाई है।
यह की अब यहाँ किसी को भी निंदा, टिका, विकथा, ईर्ष्या माया कपट की गन्दी बातें नही करना है। दुसरो की पंचायतो के कचरे भी यहाँ नही फेकना है। सख्त परिबंध हैं। इस सूचना बोर्डको आप ध्यान से पढ़ लेना। क्यों की मेरे कान वह कोई नगर पालिका की कचरा पैटी नही है। मेरे कानो से ही मुझे मेरे जीवन को नन्दन वन बनाना हैं। अगर मुझे नन्दनवन से जीवन सुवासित करता हैं। तो सब से पहले इसे कचरा पैटी बनने से बचाना होगा।