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माँ का उपकार

एक अमीर था। वह अपनी माँ को बहुत प्यार करता था। एक दिन वह बैठकर सोच रहा था *मेरी माँ ने मुझे पालने में बहुत तकलीफे उठाई। बदले में मुझे माँ के लिए कुछ करना चाहिए। तभी मै अपने ऊपर से माँ का कर्जा उत्तर सकता हूँ।*
उसने कई बोरे अनाज, दाल, चीनी, बहुत-सा सोना और रुपये इकट्ठे किये। एक दिन वह अपनी माँ से बोला–
“माँ”
” हाँ बेटा, बोल।”
“माँ,वो………..”
हाँ हाँ, बोलना। वो-वो क्या करता है?
“माँ! आप मेरी प्यारी अच्छी माँ हो।”
” हां बेटा, जानती हू मै। पर तू अपने मन की बात तो बता।”
*”माँ आपने मुझे पाल-पोसकर बड़ा किया। आज मै बहुत अच्छी हालत में हूं। सब आपकी कृपा है। मेरा मन कह रहा है कि आपने मेरे लिए जितना कुछ भी किया उसके बदले में मै भी तो आपके लिए कुछ करू।*
“अच्छा! ऐसा है कि मैंने जो तकलीफे उठाकर तुझे पाल-पोसकर बड़ा किया उसके लिए तू बदला चुकाना चाहता हूँ।
“हाँ, माँ! ऐसा ही समझ लो। इधर देखो-अनाज के बोरे, चीनी के बारे, घी, तेल, सोना, रुपये सब रखे है।”
“हाँ, तो?? इनका मै क्या करूँ??
” माँ! मै चाहता हूं कि आज आप अपने हाथों से इन चीजों को गरीबो में बाँट दो, जिससे में आपके उपकार के ऋण से मुक्त हो जाऊ। नही तो मुझ पर आपके उपकार का ऋण हमेशा बना रहेगा।”
” अच्छा, अच्छा! हां-हां क्यों नही!” जैसी तेरी मर्ज़ी।
“तो ठीक है माँ”
लेकिन बेटा, यह काम मै कल करुँगी। कल मै यह सारी चीज़ें दान में दे दूंगी।
“क्यों माँ, आज क्यों नही?”
“बस, यो ही।”
उस दिन रात को सब लोग खा-पीकर अपने-अपने बिस्तर पर जाकर सो गए। माँ जाग रही थी। उसने देखा कि बेटा सो गया है। तो वह धीरे से उठी और एक लोटे में पानी भर लिया। उसने धीरे से थोडासा पानी बेटे के बिस्तर पर उंडेल दिया। बेटे को कुछ ठंडा-ठंडा सा लगा। उसकी आंख खुल गयी। उसने देखा कि उसकी माँ उसके बिस्तर पर पानी डाल रही है। पर वह कुछ बोला नही, चुपचाप दूसरी तरफ करवट लेकर सो गया। माँ ने फिर दूसरी तरफ पानी डाला। बिस्तर गीला हो गया और बेटे की नींद फिर उचट गयी। इस बार उसे थोड़ा गुस्सा भी आ गया।
“माँ, यह आप क्या कर रही हो? मुझे ठीक से सोने भी नही देते?”
माँ बोली ” *बेटे! तेरा बिस्तर एक दिन गिला हुआ और तू से भी नही पाया। लेकिन तुझे पालने के लिए मैंने तुझको सूखे में सुलाकर, खुद गीले में सोकर कितनी राते बिताई, तुझे मालूम है?? अगर तू सात दिन भी इस तरह गीले में आराम से सोकर दिखा दे तो मै समझूँगी कि तूने मेरा ऋण उतार दिया*”
बेटा सोचने लगा। उसे अनुभव हुआ कि माँ का ऋण कभी नही चुकाया जा सकता। उसे अपनी भूल पर पछतावा हुआ। वह माँ के पैरों में गिर पड़ा।
आँसू बहाते हुए बोला- *माँ! मै समझ गया कि कोई भी बेटा कभी भी किसी भी हालत में माँ का ऋण नही चूका सकता। मुझे माफ़ कर दो माँ। मै अन्त तक हमेशा आपको याद रखूँगा”*
माँ बोली-“मुझे ख़ुशी हुई बेटे”।
बेटा फिर बोला- “माँ! मै फिर कभी माँ के उपकार का ऋण उतारने की बात न् सोचूँगा और न बोलूंगा”।
Moral: माँ का महत्त्व हमे समझना चाहिए। उनकी सेवा करना हमारा फर्ज है और कभी उनका मन न दुखाये।

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