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अखंड श्रम

गुरु चाणक्य की बुद्धि शक्ति और निर्भयता देखकर के शिष्य चंद्र गुप्त मंत्र मुग्घ हो जाता है।  वह हमेशा सोचता था की गुरु चाणक्य ने ऐसा क्या किया जिससे यह शक्ति उनमें प्रगट हुई।

एक दिन हिम्मत जुटाकर के चन्द्रगुप्त मौर्य ने गुरु चाणक्य से पूछा आपके अंदर इतनी सारी शक्ति कैसे प्रगट हुई?

गुरु चाणक्य ने कहाँ सत्य हकीकत है की मेरे में सारी शक्ति एक साथ प्रगट नही हुइ है।

चंद्रगुप्त ने कहाँ यह मै तो समज सकता हूँ पर आप थोड़ी सी hints तो दो की आप इतने बुद्धिमान और शक्तिशाली कैसे बने हो?

चाणक्य ने उत्तर दिया की अखंड श्रम साधना से मैंने मेरे मन को पुरे 25 years तक घडा है।

चन्द्रगुप्त आश्चर्य के साथ बोला 25 years तक!! चाणक्य ने कहा है जब से समज आयी है तबसे मेरे में समज आई थी तब से मै सतत् मैंने मेरे तन मन और दिमाग को रोज घडने का प्रयत्न किया है और एक विशिष्ट आकार देने के लिए लगातार एक ही दिशा में कंटिन्यू काम करा है ।और यह मुकाम पे में उसी मेहनत, लगन, परिश्रम के बल पर आया हूँ।
चन्द्रगुप्त ने चाणक्य के चरण छु कर के पूछा गुरुदेव हमको यह लाभ नही मिल सकता है।

चाणक्य ने कहा क्यू नही मिल सकता है? परंतु यह सब तेरे पे निर्भर करता है। बस तेरी अखंड लगातार मेहनत करने की तैयारी होना चाहिए।

चन्द्रगुप्त ने कहा मेरी मन की दुविधा है। मै मेहनत करने को तो तैयार हूँ पर मेरे पास धीरज नही है।

चाणक्य ने जवाब दिया की शिष्य मेहनत करने के लिए तैयार होगा तो धीरज को विकसित करने से देर नही लगेगी यूह भी तेरे में निर्भयता तत्परता है बस थोडा सा उसे बढ़ाने की जरुरत है।

चन्द्रगुप्त ने आगे पूछा गुरुदेव शरीर को मेहनत से, कसरत से, योग से घड सकते है। दिमाग को ज्ञान से घड सकते है  परन्तु इस मन को कैसे घडा जाये जिससे इस पर मेरा  अभीपत्य कायम हो सके।

गुरु ने कहा ये तो तेरे खुद के हाथ में है तू खुद स्वयं का कुंभार बन जा और समझ की यह मन एक  मिट्टी का पिण्ड है। रोज इसे विवेक समझदारी के चक्र पे चड़ा और इसको इच्छित आकर देने का प्रयन्त कर एक दिन तेरी इच्छा के अनुरूप आकार आयेगा और एक और खास बात दिमाग में रखना की कोई भी साधना का सार अगर हो तो वो है अखंड श्रमशक्ति। एक दिन में कभी कुछ नही मिलता है उसके लिए लगातार मेहनत साधना और श्रम चाहिए।

श्रम से ही रंक राजा बन जाता  है
श्रम मानव को भगवान बना देता है।
श्रम हर समस्या का समाधान कर देता है।
चन्द्रगुप्त ने अखंड श्रम का संकल्प कर के गुरु को वंदन करे।

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