जो इन्सान अपने कार्यो के प्रति वफादार नही होता है वह इन्सान कभी भी आगे नही बढ सकता है। अगर उसे आगे बढ़ाना है तो सबहे पहले इस वफादारी धर्म को अपनाना होगा।
प्राचिन बडौदा जिले मे महेसाणा जिले मे एक जज थे। जिनका नाम था ए. आर. शिन्दे। महाराज सयाजी रावँ गायकवाड के वफादारो मे एक थे। महाराज खुद से ज्यादा शिन्दे पर विश्वास करते थे। महाराज जब भी देश- विदेश जाते थे तो शिन्दे हमेशा उनके साथ होते थे। और राज्य के हर महत्वपूर्ण फैसलो मे उनकी भागीदारी होती थी।
ए बार महाराज फ्रान्स के प्रवास पर गये थे। राजा का साथ शिन्दे भी थे। खुद का सारा काम काज करने के बाद बहुत समय बचा था। महाराज ने शिन्दे से कहाँ- अगर हम यू ही बैठे रहेगं तो बोर हो जायेंगे। कही जाकर आते है।
शिन्दे तो बस महाराज का इन्तजार कर रहे थे। उन्होंने तुरंत ही कहाँ- यहा पास मे बहुत बडे झवेरी की दुकान है। दुनिया भर के श्रेष्ट रत्न वहाँ पर है। आपकी इच्छा हो तो हम वहा जाते है, कुछ जमे तो खरीद लेना नही तो वापिस आ जायेंगे।
महाराज ने वहा जाने की तैयारी बताई। शिन्दे
और महाराज वहाँ बडे झवेरी बाजार मे गये थे। वहाँ की प्रतिष्टित दुकान मे गये थे और दुकानदार ने महाराज का जोरदार स्वागत करा। महाराज ने बहुत सारी खरीदारी करी और फिर वापिस आ गये। उसी दिन शाम को व्यापारी का एक प्रतिनिधि आया और शिन्दे से मिला और बोला कि – यह आपके कमिशन के रूपये है। शिन्दे ने आश्चर्य से पुछा- कैसा कमिशन? आप महाराज जैसे बडे ग्राहक को लाए, उसका कमिशन है। शिन्दे ने कहाँ- भाई! तू पागल हो गया है। यह कमिशन मे लेता हू तो यह महाराज के साथ बेवफाई है। और मै उनका खास वफादार हूँ, मै उनका बरोसा नही तोड सकता हूँ।
उसने कहाँ- सर! ऐसा नही है। यह तो यहाँ का प्रचलन है। भाई तेरा प्रचलन तेरे पास रख, मेरे चलन तो वफादारी का है। और मुझे उसी चलन की तरह काम करना है। यह पैसे तू ले जा और कमिशन बिना का बिल बना। मै अगर यह लेता हूँ तो राज्य पर बोझ बढता है और मै बेवफा गिनाता हूँ- समझा ।
इस तरह शिन्दे ने उसे डाँटा ।
प्रतिनिधी खुश हो गया और बोला- यह बात मै राजा तक बोलूंगा। आपकी वफादारी को सलाम!
शिन्दे फिर समझाया- भाई! यह कोई बात महाराज को बोलने की नही है। यह तो हर भारतवासी का धर्म है।
बस उस वफादारी को निभाकर धर्म निभाना है ।।