जीवन ऐरण पर चडे लोहे जैसा है। हथोड़ा लोहे को जैसे घडाता है वैसे वैसे आकार पाता है। हथोड़े के प्रहर को सहन करके लोहा आकार पाता है। आकार बिना का लोहा आपने देखा होगा, बेहत भद्दा लगता है। अगर हम भी सहनशीलता के हथोड़े से जीवन को नही घडेगे तो वह भी बहुत ज्यादा कद रूपा, बेकार बन जाएगा।
जीवन को घडाना बहुत जरूरी है। जीवन को घडाने के लिए सबसे बडा टाकणा अगर कोई है तो वह सहनशीलता है। इससे श्रेष्ट कोई हथोडा नही हो सकता है।
सहनशीलता भयंकर ताप जैसी लगती है। परंतु उस ताप के द्वारा ही जीवन तेजस्वी बनता है। सहनशीलता कभी धार दार काटे जैसी लगती है। पर उस काटे के साथ रहकर ही जीवन गुलाब जैसा खिल सकता है। सहनशीलता कभी आंधी की तरह जीवन उडा देगी ऐसा लगता है। परंतु उस आंधी मे कुछ भी उडता नही बस वह तो जीवन की धूल को उडा देती है। कभी तो सहनशीलता धोधमार बरसात की तरह लगती है। जिसमे सब ( सर्वस्व ) बह जायेगा। पर यह बरसात से सिर्फ जीवन के दाग साफ हो जाते है। इसलिए बस जीवन मे सहनशील बनो।
सामनेवाला हमारे पर भले ही सहनशीलता के इच्छा हो उतने हथोड़े मारे। टूटने का डर मत रखो। कारण की टूटता हमेशा वही है जो मारता है।
“जगत के हर प्रकार के वार को
सहन कर सके एक मात्र
हथियार है तो वह सहनशीलता का ही है।”
सहनशीलता से मानव महामानव बन जाता है।और इसके अभाव मे जिंदगी वह काँटा बन जाती है। बस तो फिर इस सहनशीलता को अपना कर जिंदगी को एक खुबसूरत गुलाब बनाए ।।