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दांत की तरह उदारता की पेस्ट से जीवन मंजाता है

उदारता की ज़रूरत प्राणी मात्र को होती है। गूंगे प्राणी को भी उदारता चाहिए तो बहते पानी को भी उदारता चाहिए। जिंदगी के हर द्वार पर उदारता चाहिए। मानव से लगाकर दानव तक सभी को उदारता चाहिए। संत भी उदारता के लिए खंत करते है। महिलाये भी उदारता के हिमालय को उलांगने के लिए तैयार हो जाती है। यहाँ बच्चे भी उदारता का बिगूल बजाते नज़र आते है।

यह वह भूमि जहाँ पर आपको चार दिशा में अनुदारता के काटे दिखते तो आठो दिशाओ में उदारता के फूल खिले नज़र आते है। यहाँ आँखों में काजल के बदले उदारता अंजी जाती है।यहाँ पर दांत की तरह उदारता के पेस्ट से जीवन मंजाता है। यहाँ पर आत्मा की शुद्धि के लिए हाथ में लिया गंगा जल भी उदारता ही है।

यहा प्रेम की उदारता है तो बहम भी उदारता है। प्राणी की प्राणी के प्रति रहम भी उदारता है। यहाँ अर्पण भी उदारता है और तर्पण भी उदारता है। आर्य संस्क्रुति भी उदारता है। पत्नी का पति के सामने झुकना भी उदारता है। पति को परमेश्वर मानना भी उदारता का ही नाम है। उदारता से ही जीवन महान है।

संस्कृति का सार उदारता है। तो सन्यासी का आरंभ और अस्त भी उदारता है। देव की समक्ष होता प्रणाम भी उदारता है। यहाँ तो चारो और only for उदारता ही उदारता है।

बत्तीस पकवान का भोजन भी उदारता है तो लुखी सूखीे रोटी का टुकड़ा भी उदारता है। आँखो में से बहते आँसू की बुँदे भी उदारता है तो जोरदार बरसता बरसात भी प्रभु की उदारता है।

उदारता वो किसी की आँख से आँसुओ को पूछता रुमाल है। उदारता मुश्किल समय में ढाल बनकर के खड़ी होती है। उदारता होती है तो मानव मालामाल हो जाता है।

जहा सम्बन्ध रूपी कांच को कभी फूटने नही देता है उसका नाम उदारता है। स्नेह के कच्चे धागे को तोड़ने नही दे उसका नाम उदारता है। मानव की इज्जत लूटने न दे वो उदारता है। खाली कोठी में भी धान खुटने न दे वो भी उदारता है।

मानव समग्र उदारता की मूर्ति है। उदारता ही जीवन की सही पूर्ति है। उदारता मदद है स्नेह है प्रेम है करुणा है दया है वात्सल्य है। उदारता तो खुद ईश्वर है।

“जो इंसान उदार नही होता है
वो दुनिया में सुख का हक़दार नही होता है”

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