यह जिंदगी जो मुझे मिली है अगर इसे सूक्ष्मता हे देखता हूँ तो कभी मै प्रगती की, उन्नति की, विकास की, साधन की, अध्यात्मता की और दृढ़ता की छलांग लगाता हुआ दिखताहूँ। तो कभी हताशा, नीराशा, दुःख, क्लेश, कषाय, राग और द्वेष के अंदर खुद को गिरता देखता हूँ।
Life तो इसी तरह चलाना है क्या? कभी सफलता है तो कभी असफलता है। यह क्रम सतत् चालू है। मुझे इस क्रम को बदलना है। जब तक यह क्रम रहेगा मै अर्हत् की ओर प्रयाण नही कर सकता हूँ। मै आज इस भौतिकता मे ऐसा उलझा हुआ हूँ की मेरे विचारो का सतत् डाउनफाल ही चालू है। स्वार्थ की हर प्रवृति के लिए मै सब से पहले रेडी हो कर आ जाता हूँ। पर जैसे ही परमार्थ की बात आती है, साधना, आराधना, उपासना की बात आती है। तन मन धन से मानव सेवा की बात आती है तो मै सब से पिछे हो जाता हूँ।
व्यापार की deal मे सदैव आगे रहेने वाला मै हमेशा फायदे के सौदे करने वाला जब भी धर्म के कार्य मे जाता हूँ तो हर deal मै पिछे रहता हूँ । मुझे मिलने वाले हर मौके को मै छोड देता हूँ।
बिजनेस का राजा लोग मुझे कहते है। पर जब भी आत्मा के लिए बिजनेस करने की बात आती है तो रंक बनकर के सामने आ जाता हूँ।
मेरे परिवार की माता- पिता की, पत्नी की और बच्चो की हर इच्छा पूरी करने मे मेरी दिन रात की मेहनत लगा देता हूँ। कैसे भी करके उनकी हर इच्छा को पुरी करता हूँ। परंतु आत्मा की इच्छा को मै जानने की कोशिश तक नही करता हूँ। इन्ही मापदण्डो पर मेरा जीवन चलता है।
मुझे मेरी साधना पंथ पर हमेशा नीचे ही गिरना है। मै चार कदम की छलांग लगाकर आगे जाता हूँतो फिर से 10 कदम का डाउनफाल आ जाता है।
परम तारक परमात्मा बस मेरी आपसे इतनी सी प्रथना है साँप सीडी के खेल जैसी है यह जिंदगी।
कभी चढना होता है तो कभी उतरना होता है। कभी मै इस खेल मे बडी छलांग लगाता हूँ तो कभी एक दम निचे गिर जाता हूँ।
मेरे जीवन के होम ग्राउन्ड मे जगह- जगह पर मुह फाड के साँप बैठे है। बस साँप के खेने मे मेरा पैर कभी भी नही रखाए। इतनी करूणा जरूर बरसाना तारणहार ।।