एक समारोह में कुछ शिक्षको की आज के शिक्षण की हालत पर चर्चा चल रही थी। एक व्यक्ति ने शिकायत करते हुए कहाँ- शिक्षा के ऊपर हमारा देश लाखों रूपए ख़र्च करता है, तो भी शिक्षण के ऊपर इतनी फ़रियाद क्यों है?
वहाँ उपस्थित एक इन्सान ने बड़ा अच्छा उत्तर दिया- मित्र ख़र्च करने से कुछ नही होता है, ख़र्च उगना भी चाहिए। आप कच्चे हीरे की ख़रीदी पर लाखों रुपये ख़र्च करते है परंतु जब तक हमारे कारीगर उस पर पेल नही करते है तब तक उसमें से क़ीमती हीरा तैयार नही हो सकता है। विध्यार्थी कच्चे हीरे जैसे है, हमारा शिक्षक अगर उन पर संस्कार की पेल पाड़ सकता है तभी शिक्षा पर किया खर्च लेखे लगेगा।
आज चारों तरफ़ शिक्षण निष्फल हो रही है। उसकी हलाहल मची है। तब एक बात आपको याद रखनी पड़ेगी, शिक्षा विभाग ऐसा दावा नही कर सकता है-
शिक्षा संस्थानो जो अभ्यास क्रम तैयार किया है, उसके द्वारा विध्यार्थी बुध्दिमान और मानवता से भराभरा आदर्श नागरिक बन सकता है।
नये यंत्र के बाज़ार में आने से पहले ही क्वालिटी कंट्रोल बोर्ड द्वारा निरीक्षण करने में आता है। उसके बाद उस पर टेस्टेड और ok ऐसा सिक्का लगाया जाता है। आज के विध्यार्थी के सर्टिफिकट में ऐसा कोई सिक्का मारने में नही आता है। आज के इस बेकार शिक्षण के ऊपर शिक्षकों को शेष देना उचित नही है। क्योंकि अभ्यास क्रम वह तैयार नही करते है। आपको काजू पनीर की सब्ज़ी खाने की इच्छा है और थाली में दूधीचने की सब्ज़ी आए तो उसमें परोसने वाले की कितनी ग़लती है? उसके कमंडल में तो जो बनाया है वही उसके पास आएगा अर्थात् शिक्षण के पास शास्त्रियों ने जो रसोई(अभ्यस्क्रम) नक्की किया है वही शिक्षकों को परोसना पड़ता है।
शिक्षण उसकी जगह पर स्पष्ट है। विध्यार्थी को संस्कारी मानव बनाने के लिए पसीना नही गिराता है।शिक्षण के महारथियों ने इस तरह की कामगिरी शिक्षा को नही शौपि है। शिक्षण के पास उसके स्पष्ट लक्षयंक है। कामर्स का विद्यार्थी वाणिज्य के काम में निपूर्ण बनता है। इंजीनेर का विद्यार्थी यंत्रविषयक ज्ञान से महितगर बनता है। सायिनस का विद्यार्थी विज्ञान की जानकारी प्राप्त करता है। परंतु इस शिक्षा प्रणाली से विचित्र परिस्थिति का निर्माण हुआ है। विज्ञान में निपूर्ण हुआ छात्र like लेबोरेटरी बारामबार निष्फल जाता है। वाणिज्य का विद्यार्थी जीवन के व्यापार में खोट करता रहेता है। बिईसनस मनेजमेंट में गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाला विद्यार्थी like मेनेजमेंट में पूर्णत: मूर्ख साबित होता है। विशाल क़द की मशीन को दो मिनित में चालू कर देता है। वही बाहोश इंजीनेर 5 दिन से नाराज़ प्रेमिका को फ़ॉल्ट नही ढूँढ पाता है। भूतल में क्या है, पल भर में बता देने वाला भूशास्त्री बाजु में सोई पत्नी के दिल में क्या है वह नही जान पाता है। यह सारे के सारे उदाहरण शिक्षक की निष्फलता के नही है बल्कि उसके अधूरे पण के है।
हम जानते है ऊपर की बातें स्कूल सिलेबस में नही आती है। यह तो शिक्षा की सबसे बड़ी भूल है। आज शिक्षण को केवल मामूली माहितिलक्षि बना दिया है। इसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है। शिक्षण वह माहितिलक्षि नही जीवनलक्षि होना चाहिए।।