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काकचेष्टा, बकध्यानं, श्वाननिद्रा तथैव च अल्पाहारी, ब्रह्मचारी विद्यार्थी पन्च लक्षणं

इस श्लोक मे बडे ही मजे की बात करने मे आई है, आदर्श विद्यार्थी के पाँच मुख्य लक्ष्ण बताये है अथवा इन पाँच लक्षणो का जो सेवन करता है वही श्रेष्टतम विद्यार्थी होता है। जो इन पाँच गुणो को समझ जाता है उस पर माँ सरस्वती की अनराधार कृपा वर्षा होती है।

■ काक चेष्टा : काकचेष्टा यानि कौए सी चेष्टा। कौए जैसे लक्षण हमे कोई कौए से सिखने का बोले तो ज्यादा ओकवर्ड लगता है। वह अपनी हर एक हलचल मे इतना सावधान रहता है कि कोई भी उसे पकड़ने मे जल्दी सफल नही होता है। इसी तरह विद्या के अभ्यास मे इतना सावधान विद्यार्थी को रहना चाहिए जिससे ज्ञान उसे जहाँ से भी मिले उसे Catch कर ले। गृहन करने के लिए सावधान रहने की आवश्यकता है।

■ बक ध्यान : बक ध्यान यानि बगुले का ध्यान। विद्यार्थी को अगर जीवन मे सफलता को सार करना है तो उसे ज्ञानार्जित करने मे अपना ध्यान बगुले की तरह करना होना। बगुला पानी मे एकदम धीरे धीरे चलता है परंतु उसका समग्र ध्यान अपने भोजन की ओर होता है इसी प्रकार विद्यार्थी को भी तमाम क्रियाए करते समय गति को धीमी रखना है परंतु समग्र ध्यान only for विद्या अभ्यास के लिए रखना है ।

■ श्वान निंद्रा : श्वान यानि Dog. श्वान निंद्रा यानि कुत्ते की नींद। कुत्ता अपने सम्पूर्ण जीवन मे कभी भी किही भी निश्चित होकर घोर निंद्रा नहीं लेता है। वह सदैव निंद मे भी सतर्क रहता है। वह निंद मे भी हर समस्या से लड़ने के लिए तैयार होता है। विद्यार्थी को भी कम निंद लेना चाहिए और हर दम अपने करियर के लिए जागरूक रहना चाहिए। आरामप्रिय बनकर के विलासित इन्सान की तरह निंद नहीं लेना चाहिए। तभी वह जीवन मे सफल इन्सान बन सकता है।

■ अल्पाहारी : विद्यार्थी अल्पाहारी होना चाहिए अर्थात कम खाने वाला होना चाहिए। विद्यार्थी को जरूरत के हिसाब से ही भोजन करना चाहिए। क्योंकि अधिक भोजन करने से इन्सान को आलस आने लगते है। विद्यार्थी के लिए आलस वो वीष है। अधिक आहार करने से पेट भी बिगडता है जिसके कारण वह कोई भी कार्य नहीं कर सकता है। और इसी प्रकार भुखा रहने से विद्यार्थी का स्वभाव चिड चिढा हो जाता है और कार्य करने मे समस्या आने लगती है । और यह दोनो ही स्थिति विद्यार्थी के लिए नुकसान दायक होती है। इसलिए student को हमेशा जरूरत अनुसार भोजन करना चाहिए ।

■ ब्रह्मचारी : विद्यार्थी संयमी होना चाहिए। हर एक विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। भूतकाल मे हम तक्षशिला या नालंदा विश्व विद्यालयो को देखेंगे तो वहाँ अभ्यास से भी ज्यादा विद्यार्थी को संयमित बनने मे प्रयत्न किया जाता था। क्योंकि संयमित विद्यार्थी ही एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। और अगर विद्यार्थी ने मन तर से संयम हटा दिया तो उसका अभ्यास तर से विमुख हो जाएगा। उसके बाद उसे दुर्विचार आते रहेंगे और उसका अभ्यास बिगड़ता चला जाएगा। और याद रखना अगर किसी का भी अभ्यास बिगड़ता है तो उसकी जिंदगी बिगड़ती ही। इसलिए हर एक विद्यार्थी को संकल्प करना चाहिए कुछ भी हो जाए वह विद्यार्थी जीवन संयमित रहेगा और ब्रह्मचर्य का पालन करेगा ।

” क्योंकि याद रखना विद्यार्थी जीवन यानि
Life को ढूढकर बाहर निकलने का golden time.”

इस golden time मे की गई मेहनत ही आपके उज्वल भविष्य का निर्माण करेगी यही शुभेच्छा …

आन्नद वो आत्मा का धन
April 6, 2016
जीवन का यथार्थता का पत्थर में सर्जन
April 6, 2016

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