माता-पिता से अनुकूल व्यवहार:
यहां आगे कहा गया है कि माता-पिता के अनुकूल व्यवहार करें। घर में रसोई बने तो उसमें भी माता-पिता की अनुकूलता को ध्यान में रखकर से बनाए। आज से ही यह परिवर्तन लागू कर दे। रसोई बनाने से पहले उनसे पूछे कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं?
सभा: पूछने के बावजूद न बताएं तो?
जब माता-पिता भोजन करें तो ध्यान रखो कि कल उन्होंने मन से और ज्यादा खाना खाया था। जबकि आज कम खाया है। इसके बाद घर में तुरंत पूछो कि कल क्या बनाया था? इससे पता चलेगा कि उन्हें क्या पसंद है?
जैसे भोजन, वैसे ही वस्त्रों की अनुकूलता का भी ध्यान रखो। उनके अनुकूल वस्त्र खोज कर लाएं, उनकी आयु को ध्यान में रखकर वस्त्र खोजकर लाए, मौसम के अनुरूप अनुकूल वस्त्र को खोजकर लाए, शारीरिक अनुकूलता के अनुसार वस्त्र लाकर देने चाहिए।
सर्दियों के दिनों में उनके शरीर की सुखाकारी के लिए अनुकूल गर्म तेल से मालिश करना चाहिए तथा गरम कपड़े पहनाने चाहिए। इसी प्रकार सभी ऋतुओं में ऋतुओं के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
इन सभी कार्यों के लिए लिखा गया है कि एक सेवक जिस तरह काम करता है, वैसे ही संतानों को अपने माता-पिता के सेवक बन कर उनकी सेवा करनी चाहिए। माता-पिता की उम्र 80-85 हो, पुत्र की उम्र 60-65 वर्ष हो तो भी ऐसे पुत्र-पुत्रियों को माता-पिता की सेवा सेवक की भांति करना चाहिए।
एक जगह कहा गया है कि, माता-पिता की उपस्थिति में माता-पिता को ऊपर तथा पुत्रों को नीचे बैठना चाहिए। उन्हें माता-पिता के साथ समान आसन पर भी नहीं बैठना चाहिए। उनके चरणों में ही बैठना चाहिए। इसी में जीवन का सौभाग्य मानना चाहिए। यह मर्यादा अभी भी हमारे यहां (साधुओं मे) पाली जाती है। श्री भगवती आगम सूत्र में आता है कि श्री गौतमस्वामीजी महाराजा समवसरण में किस स्वरूप में देखने को मिलते थे? इसके उत्तर में कहा गया कि चैत्यवन्दन की मुद्रा में बैठे होते थे, दोनों हाथ जोड़े होते थे, मस्तक थोड़ा झुका होता था, दृष्टि प्रभु के समक्ष होती थी। इस प्रकार प्रभु के सामने बैठे श्री गौतमस्वामीजी महाराजा देखने को मिलते थे। यदि 50,000 के शिष्यो के गुरु भगवान के प्रथम गणधर भी भगवान का ऐसा विनय करते हो तो आपको तथा हमें कैसा विनय करना चाहिए?