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औचित्य माता पिता का – भाग 2

माता-पिता आप के साथ या आप माता-पिता के साथ?…

जिनके घर में माता-पिता का अखंड छत्र है, उसके सौभाग्य की अवधि नहीं है। पहले पूछ लूं ‘आप अपने माता-पिता के साथ है, कि माता-पिता आपके साथ हैं?

सभा: (एक साधु महाराज) दोनों में क्या अंतर है?

यह हमारा साधु पूछता है? बहुत बड़ा अंतर है। इतने वर्षों के बाद भी आपको यह समझ में नहीं आया तो आप लोगों को क्या समझ में आनेवाला है? बोलो, आप मेरे साथ है या मैं आप के साथ? आप गुरु के साथ है या गुरु आप के साथ? आप गुरु के अंकुश में है या गुरु आपके अंकुश में? ‘गुरु मेरे साथ है, या गुरु मेरे वश में है।’ ऐसा जिस दिन कहने का समय आए, तब मानना कि सभी शिष्य जुदा हुए हैं और गुरु के भी पूण्य चले गए हैं।

अन्य प्रकार से भी समझाऊं : आपका पुत्र जब किसी से कहें कि- ‘पापा मेरे साथ है’ तब आपको कैसा लगेगा? झटका लगेगा? तब यह फर्क समझ में आएगा? तब समझो इससे अच्छा है कि अभी समझ लो तो आपका भी कल्याण हो और आपकी संतान का भी कल्याण होगा।

ढ़ीली-ढ़ीली बातें बहुत हुई, किंतु इनसे तुम्हारा ठिकाना नहीं पड़ता, इसलिए मुझे लगता है कि अब मैं कठोर होकर कहूंगा तो ही तुम्हें लगेगा; और लगेगा तो ही आज तक की जिंदगी में हुई भूले सुधारने का निर्णय होगा।

यहां बैठे पुत्रों से पूछना चाहता हूं कि, आप अपने माता-पिता के अंकुश में है कि आपके माता-पिता आपके नियंत्रण में है? आप अपने माता-पिता के साथ हैं कि आपके माता पिता आपके साथ हैं?

आपको लगना चाहिए कि मेरा कितना पुण्य है कि ‘माता-पिता ने मुझे उनके साथ रखा।’ लेकिन यह तो हमसे कहते हैं कि, महाराज साहब ‘माता-पिता मेरे साथ है। में उन्हें संभालता हूं, निभाता हूं।’ बोलो! माता-पिता को निभाना है कि उनकी आराधना करनी है? मुझे आपका स्पष्ट जवाब चाहिए। मैं एक-एक पुत्र-पुत्री से पूछना चाहता हूं कि माता-पिता को निभाना है कि उनकी आराधना करनी है? यदि आराधना करनी हो तो उनके सानिध्य में रहने में आपको अपने परम सौभाग्य की अनुभूति होनी चाहिए। माता-पिता के चार पुत्र हो और सभी कहते हो कि ‘मेरे यहां ही रहो!’ और माता-पिता कहते हो कि ‘मेरे लिए तो चारों पुत्र समान है। किसे खुश रखे और किसे नाराज करें। इसीलिए सब साथ में रहो!’ तो आप माता-पिता की खातिर साथ में रहोगे कि नहीं? हमारे माता-पिता को संतोष होता है तो हम सब भाइयों को साथ ही रहना है, ऐसा निर्णय कर सकते हो न?

कई लोग कहते हैं कि ‘महाराज साहब! हम चार भाई थे, माता पिता ने हम चारों भाइयों को समान रूप से रखा है। किसी बात में कोई कमी नहीं आने दी।’ माता-पिता यदि दस बाई दस के कमरे में चार पुत्रों को पालते हैं तो वह चार पुत्र और उनकी बहूएं मिलकर आठ लोग हो कर भी दो पांच करोड़ के फ्लैट में, विशाल महलों में रहने वाले, माता-पिता को कहां रखें? ऐसा प्रश्न कर सकते हैं? माता-पिता को रखने में कैसी समस्या? यह समस्या नहीं, यह तो हीलना कहलाती है। जिसके घर में माता-पिता को रखने की समस्या हो, उसके भाग्य का तो समझो दिवाला निकल गया है। आज एक निर्णय होना चाहिए कि उनके सानिध्य में रहना है। उनके साथ ही रहना है।

औचित्य माता पिता का – भाग 1
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