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औचित्य माता पिता का – भाग 15

बदले की अपेक्षा ना रखो!

माता पिता के संपत्ति मिलेगी, इस आशा से उनकी सेवा शुश्रुषा करना पाप है ऐसी आशा हीन आशा है ऐसी आशा से उनका कोई कार्य सेवा शुश्रुषा न करें ऐसी आशा ह्रदय के किसी भी कोने में हो तो उसे दूर कर देना! माता पिता को आश्वासन देना की मुझे आपका कुछ भी नहीं चाहिए मुझे चाहिए केवल आपका आशीर्वाद आपकी जो भी संपत्ति है, वह आप अपने हाथों से ही खर्च करके जाना! आप जहां कहो वहां खर्च कर दूं आप नही खर्च करोगे और ऐसे ही चले जाओगे तो भी आपकी पूंजी में से मैं कुछ भी लेनेवाला नहीं हूं सब कुछ तीर्थस्थान में उपयोग कर दूंगा, इससे अच्छा है कि आप स्वयं ही अपने हाथों से यह सब अच्छे स्थान पर खर्च कर दो!

संक्षेप में माता पिता की सेवा निःस्वार्थ भाव से करनी है माता पिता पुत्र को अपनी इच्छा से जो भी धन दे, उसे वह उपयोग कर सकता है न दे और निधन हो जाए तो पुत्र को वह धन स्वयं हेतु उपयोग नहीं करना चाहिए उनके ही नाम से धर्म कार्य में खर्च कर देना चाहिए । यह एसा न करे तो माता पिता की मृत्यु की अनुमोदना का पाप लगता है -ऐसा योगग्रंथ भारपूर्वक कहते हैं माता-पिता स्वेच्छा से दे, उसका ही पुत्रदि उपयोग कर सकते हैं इसके अलावा अन्य संपत्ति पर अधिकार नहीं जमा सकते । आपके अधिकार का हिस्सा भी आपके छोटे बड़े भाई अथवा बहन आदि को दे जाए तो भी आपको बीच में आपत्ति नहीं जतानी चाहिए । प्रश्न नहीं करना चाहिए आपको कुछ भी न दे तो उनसे कारण नहीं पूछना चाहिए इसी भाव से उनकी अखंड सेवा करें। उन्होंने जन्म दिया और पालन पोषण करके बड़ा किया। यही उनका सबसे बड़ा उपकार है।

औचित्य माता पिता का – भाग 14
September 17, 2018
औचित्य माता पिता का – भाग 16
September 17, 2018

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