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जैन संत के सत्संग का प्रभाव

मगध देश के राजा वन में शिकार करने के लिए गए। तभी वहाँ पर एक सुन्दर सरोवर के किनारे राजा चित्रागंद की नज़र गयी वहाँ पर एक घने वृक्ष के नीचे एक श्रमण भगवंत ध्यान में लीन थे।साधु परमात्मा की भक्ति में मस्त थे।राजा जैन धर्म से जुड़ा हुआ नहीं था।उसने दान करने के भाव से महात्मा के पास अपने सेनिको के साथ धन और सन्देश भेजा आपकी रोज़ की आवशकता को पूर्ण करने के लिए मगधराजा की तरफ से यह भेंट आप स्वीकार करो।परन्तु साधु भगवंत ने उनकी भेंट को वापिस भेज दिया। राजा के अनुचर उस भेंट को पुनः राजा के पास ले गए। राजा को लगा की शायद यह भेंट उन्हे कम लगी होगी। उनके साथ में साधु ज़्यादा होंगे।इसलिये वापिस भेज दिया।उन्होंने बहुत सारी सुवर्ण मुद्राए और अनेक प्रकार के वस्तुए फिर से अपने आदमियों के साथ भेजी। पर महात्माओ ने फिर से उसे वापिस भेज दिया।महाराजा चित्रागंद को साधुओ का यह व्यवहार विचित्र लगा। इसमें उन्हें रहस्य नज़र आ रहा था और इस रहस्य जानने के लिए खुद राजा चित्रागंद ने साधु भगवन्त के पास जाने का निर्णय किया।

भक्ति भाव के साथ महाराज भेटो को लेकर गुरु भगवंत पास गए और गुरुदेव को प्रणाम करके प्रश्न पूछा गुरुदेव मेरी भेंट में कोई खामी थी। क्या कारण था जिससे आपने मेरी भेट को नही स्वीकारा?

महात्मा ने जवाब दिया की मेरे पास मेरी जरुरत के हिसाब से पर्याप्त धन है।

राजा को पास में ही उद्यान में ले गए एक वृक्ष के निचे उन्होंने बोला हम यही रहते है और राजा वहा घोर से देखने लगा।

वहा पर एक आसन, पातरे और ओडने का वस्त्र था। वहाँ कोई कबाट नही था, तिज़ोरी नही थी। यह देखकर राजा ने कहा की मुझे तो यहाँ कुछ नही दिखाई दे रहा है।

साधू भगवंत तो राजा का कल्याण करना चाहते थे।उन्होंने राजा को पास में बुला कर कहा की मै रसायन विद्या जानता हूँ जिससे किसी भी धातु को सोना बनाया जा सकता है।

यह बात सुन कर के राजा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। राजा ने गुरुदेव से कहा यह रसायन विद्या आप मुझे सीखा दो। वह और वैभवशाली बनना चाहता था।प्रजा का कल्याण करने के नाम से उसने गुरु से प्रार्थना की थी।

उसके लिए तुझे समय देना होगा रोज मेरे पास आना होगा, मेरी बातो को ध्यान से सुनना होगा। फिर यह वुध्य तुझे सीखा सकता हूँ।

राजा रोज गुरुदेव के पास आने लगा। सत्संग करने लगा और उसके विचार परिवर्तन होने लगे। जब उसके विचार बदल गए।

फिर महात्मा ने एक दिन स्नेह से पीछा की रसायन विद्या सिखाऊँ क्या?

राजा ने जवाब दिया प्रभु में खुद रसायन बन गया हूँ, नश्वर विद्या सिखकर में क्या करूँगा ? यह सत्संग का प्रभाव था।

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