एक महात्मा के पास ब्राह्मण आया और उसने एक प्रश्न पुछा, जिस पर दोनो कि खुब चर्चा चली।
ब्राह्मण ने महात्मा से पुछा- महान किसे कहते है?
महात्मा ने कहाँ- जीसमे यह पाँच वस्तु होती है उसे महान कहते है-
1. कुल
2. विद्या
3. धन
4. प्रतिष्ठा
5. शील
ब्राह्मण ने फिर से प्रश्न पुछा- अगर इसमे से एक वस्तु कम करनी हो तो किसे करोगे?
महात्मा ने जवाब दिया की इसमे से कम करना है तो
कुल को कम कर दो। व्यक्ति कौन से कुल से जन्मा है इसका महत्व नही है। उसमे विद्या होनी चाहिए। शील होना चाहिए- खास महत्व तो इसका है।
ब्राह्मण ने फिर से इसका प्रश्न दोहराया की अगर इन चार मे से किसी एक को कम करना हो तो किसको कम करोगे?
तब फिर महात्मा ने जवाब दिया की- धन को कम कर दो। इन्सान के पास धन नही होगा तो भी चल सकता है। परंतु विद्या, प्रतिष्ठा और शील होना बहुत जरूरी है। इसके बिना मानव नही चल सकता है।
ब्राह्मण ने फिर से प्रश्न पुछा- महात्मा इन तीनो मे से किसी एक को कम करनाओ तो किसको कम करोगे?
महात्मा ने बडा अच्छा उत्तर दिया- इन्सान की समाज मे प्रतिष्ठा हो तो बहुत अच्छी बात है। और नही हो तो कोई बात नही परंतु उसके पास विद्या और शील तो होना ही चाहिए। क्योंकि अगर यह नही तो प्रतिष्ठा तो बन ही नही सकती है।
ब्राह्मण ने फिर से प्रश्न पुछा- अब अगर इन दोनो मे से किसी एक को कम करना हो तो आप किसको कम करोगे?
महात्मा ने उत्तर दिया अगर ऐसा होता है तो मे विद्या को कम करूंगा। क्योंकि अगर जीवन मे विद्या कम होगी तो चल सकता है पर परंतु शील के बिना इन्सानियत नही हो सकती है।
यानि उन महात्मा ने बड़े ही अच्छे शब्दो मे बता दिया कि विद्या का पाया वह शील है। और अगर जीवन मे शील नही तो कुछ नही है।
तो बस इस शील को अपना कर इन पाँच को जीवन मे लाकर महान बनने का प्रयत्न करे।।
“मानव के लक्षण बदले उसी का नाम शिक्षण है”