एक नौजवान शिष्य सालो से साधना कर रहा था। पर उसके बाद भी प्रभु के दर्शन नही हुए। वह गुरु के पास गया और पुछा- गुरजी! मुझे आपसे विनंती करनी है।
गुरुजी ने कहाँ- बोलो क्या बात है?
शिष्य ने कहाँ- गुरूजी मुझे ईश्वर देखना है। आप मुझे ईश्वर दिखा सकते है?
गुरुजी दो क्षण मोन रहे और फिर उन्होंने जवाब दिया- मै जो बोलुंगा उस काम को उसी तरह करेगा?
शिष्य बोला- गुरजी ईश्वर के दर्शन करने के लिए, आप जो बोलोगे वह सब मै करूंगा। एक कदम भी मै पिछे नही हटूंगा। आपकी हर बात
स्वीकार करूंगा।
गुरजी ने कहाँ- आज से एक महीना पुरा तुझे एक रूम मे एकान्त बैठकर “भैस” शब्द का रटन करना है।
उस युवा ने गुरु की आज्ञा को स्वीकार करके सतत् एक माह तक रूम मे बैठकर ” भैस” शब्द का रटन करता गया। उसे एक माह पश्चात पुरी दुनिया भैस जैसी लगी। एक माह के बाद वह पुनः गुरु के पास गया। उसने गुरु से कहाँ- वैसा करा अब बोलो क्या करू?
गुरु दे पुछा- यह पिपल वृक्ष कैसा लगता है?
शिष्य ने जवाब दिया- भैस जैसा।
गुरु ने पुछा- मै कैसा लगता हूँ?
शिष्य ने कहाँ- सरस।
गुर ने कहाँ- जा एक माह और “भैस” शब्द का रटन कर।
शिष्य ने दुसरे माह भी ” भैस” शब्द का रटन करा। जब वह दुसरे माह के अन्त मे बाहर आया तब गुरू ने पुछ- अब मै कैसा लगता हूँ?
युवान ने कहाँ- अब तो ऐसा लगता है जैसे कि मैई भैस हूँ। जल्दी आज्ञा दो नही तो सिंग मार दुंगा।
गुरु ने कहाँ- मुझे कोई आज्ञा नही देनी है। बस जिस तरह एकान्त मे रहकर जाप के कारण भैस उतर गई है। तू भैस की तरह बन गया है- यही ईश्वर प्राप्ति का उपाय है।
प्रभु के नाम रटन से चारो ओर प्रभु ही दिखते है। और हम प्रभु मे एक रूप हो जाते है।
शिष्य को ईश्वर प्राप्ति का उपाय समझ मे आ गया था।।