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समस्याओ का सामना शुरुआत से करो

एक नगर में जीवन विकास की प्रश्नोत्तरी चल रही थी। श्रोता विविध प्रश्नों को पूछकर समस्याओ का समाधान प्राप्त कर रहे थे। एक युवक ने बड़ा अच्छा प्रश्न पूछा-” महाशय जी हम हमारी जीवन यात्रा में अनेक समस्याओं को अनुभव करते है। परन्तु अधिकतर बार हम प्रामाणिक प्रयास करने के बाद भी बाहर नहीं आ पाते है”?

वक़्ता ने युवक को धन्यवाद देते हुए कहाँ- ” मित्र यह तुम्हारे एक का ही नहीं अधिकतर लोगो का यह सवाल है। इस सवाल का जवाब आप सबको मुझे एक छोटासा प्रयोग करके देना है।”
सारे के सारे श्रोता बड़े ही उत्सुक थे कि वक़्ता क्या प्रयोग करके बतायेगा।

थोड़ी देर में वक़्ता ने एक स्टोव मंगवाया। उस पर एक पतीला रखा और उसमें पानी भरा। उस पतिले में एक मेंढक रखने में आया।मेंढक स्वयं की शक्ति का उपयोग करे वो बाहर निकल सके इतना ही पानी उसमे भरा था। मेंढक बड़े ही आनंद से उस तपेले में खेलने लगा।

स्टोव को चालू करके एक दम धीरे ताप पर पानी को गर्म करने का शुरू करा। धीरे धीरे पानी गरम होने लगा परन्तु मेंढक वह तो अपनी मस्ती में ही मस्त था। थोड़ी देर में पानी की गर्मी बड़ी मेंढक को अनुभव होने लगा। बाहर निकलने का विचार किया। वह बाहर निकलने के लिए कूदा भी सही पर कुद नहीं सका। बार बार उसने प्रयास करा पर हर बार वह निष्फल गया। जैसे जैसे वह प्रयास करता रहा वैसे वैसे छोटी छोटी छलांग लगता रहा

प्रयोग को पूरा करके वक़्ता ने कहाँ- इस मेंढक में कूदने की क्षमता थी तो भी वह कूद नहीं सका कारण की शुरुआत में जब पानी गरम होने का शुरू हुआ तब वह खुद की मस्ती में मस्त था पर उसे इस बात का पता ही नहीं था। परन्तु उसका शरीर बढ़ रहे तापमान के सामने समानता प्राप्त करने के लिए शक्ति खर्च कर रहा था। उसकी बहुत सारी शक्ति खर्च हो चुकी थी।और अब अगर वह प्रयास भी करे तो पूरी शक्ति के अभाव से स्वयं के काम में भी सफल नहीं हो पाया है।

हम सब भी इस मेंढक जैसे ही है। जीवन में कोई समस्याओ की शुरुआत होती है, तब हम समस्याओ का सामना करने मे पुरे पुरे सक्षम होने के बाद भी छोटी समस्याओ पर ध्यान देते नहीं है। जब समस्या पानी उबलने जैसी गरम हो जाती है तब हम उसमे से बहार आने में समर्थ नहीं रहते है।

“मिटा सके इतनी फुर्सद मिली ही कहाँ?
बाकि रेखा तो हाथकी बहुत पतली थी।”

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