क्रोध काल है। विकराल है। क्रोध मानव को दानव बनता है। क्रोध मे संत भी संयम खो देता है। क्रोध जीवन का नाश करता है। तो क्रोध सुख का विनाश करता है।
क्रोध मे मानव मे राक्षस आ जाता है। जो चारित्र का हरण कर देता है। तो हमारे जमीन का हनन करता है। क्रोध मानव के अन्दर छूपी अद्शय हिंसा है तो क्रोध
मानव के अन्दर रहा विकराल तांड़व है। यह इन्सान को हेवान बनाता है।यह चेपी रोग है जो इसका स्पर्श करने जाता है उसे लग जाता है।
इस भारत भूमि पर हुए कई महायुद्ध का कारण यह
क्रोध है। इस क्रोध के कारण रामायण हुई तो क्रोध के कारण ही मुनि को चण्ड़कोशिक नाग बनना पड़ा।
इस क्रोध के कारण कई बार इस धरती को जलना पड़ा है तो क्रोध के कारण अनेको बार धरती माँ अपने बेटो के खुन से रंगाई है ।
क्षी कूष्ण ने क्रोध के बारे मे बहुत अच्छी बात अजुन को कही है- क्रोध अविवेक ओर मोह का जन्मदाता है जब जब क्रोध जागता है मानव के विचारने की, समझने की शक्ति को नष्ट कर देता है और परिणाम मे इन्सान को मान, प्रतिष्ठा, सम्मान, यश खोना पड़ता है।
देख अजुन अगर तुझे युद्ध जीतना है तो सबसे पहले तुझे क्रोध पर विजय प्राप्त करनी पड़ेगी।
श्री कुष्ण का यह सदेश हमारे जीवन का उध्दारक बन सकता है। जो लोग यह बात करते है की क्रोध को स्वयं भगवान भी नही जीत सकते है तो हमारी क्या ओकाद बड़े तपस्वीयो- संतो को भी इसने हरा दिया है तो मे तो मामुली सा इन्सान हुँ।
आपकी बात सही हो सकती है परन्तु प्रदर्शन गलत है। विश्व मे ऐसे कई सारे उदाहरण है जिसमे एक दम सामान्य इन्सानो ने क्रोध को जीता है और फिर दुनिया भी जीती है। गजसु कुमार मुनि, मेतार्य मुनि आदि अनेक महापुरुषो ने क्रोध पर विजय प्राप्त करी है ।
तो बस जब भी क्रोध आये तो उन्हे याद कर क्रोध को त्याग करे ।।