प्रतिस्पर्धा करना और दुसरो से आगे निकलना अच्छी बात होती है, जीवन मे श्रेष्ठता हेतु ये आवश्यक भी है, लेकिन एक दूसरे की टांग खींचना ,एक दूसरे की छवि गिराना, एक दूसरे की बुराई करना, किसी को जलनवश आगे नही जाने देना- ये खराब बात होती है।
हमने अक्सर देखा है की जब भी किसी ने कुछ नया करने का प्रयास किया या समाज की पुरानी रूढ़िवादी परम्पराओं को बदलने हेतु प्रयास किया तो बाकी लोग उसे बुरा कहना शुरू कर देंगे, कुछ लोग उसकी आलोचना करेगे, कुछ उसकी टांग खीचेंगे । बहुत कम मुट्ठी भर लोग ही होते है जो जीवन मे आपको सही मार्गदर्शन देते हैं, अथवा आपकी जिंदगी मे प्रेरणादायक बनकर आपको प्रोत्साहित करते है ।
ऐसा नही है कि संसार मे काबिलियत नही है, या प्रतिभाओ की कमी है । ये सब तो है लेकिन सबसे बढ़ी बात एक दूसरे को नीचा गिराना और उस पर से ऊपर चढ़ना ये आम बात सी हो गयी है ।
आइये एक सुंदर सी कहानी से मेरी बात आप तक पहुंचाने का प्रयास करता हूँ –
एक बार किसी राज्य के राजा ने मंत्री से कहा- मेरा मन प्रजाजनों में से जो वरिष्ठ हैं उन्हें कुछ बड़ा उपहार देने का हैं। बताओ ऐसे अधिकारी व्यक्ति कहाँ से और किस प्रकार ढूंढ़ें जाय?
मंत्री ने कहा – सत्पात्रों की तो कोई कमी नहीं, पर उनमें एक ही कमी है कि परस्पर सहयोग करने की अपेक्षा वे एक दूसरे की टाँग पकड़कर खींचते हैं। न खुद कुछ पाते हैं और न दूसरों को कुछ हाथ लगने देते हैं। ऐसी दशा में आपकी उदारता को फलित होने का अवसर ही न मिलेगा।
राजा के गले वह उत्तर उतरा नहीं। बोले! तुम्हारी मान्यता सच है यह कैसे माना जाय? यदि कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हो तो करो।
मंत्री ने बात स्वीकार करली और प्रत्यक्ष कर दिखाने की एक योजना बना ली। उसे कार्यान्वित करने की स्वीकृति भी मिल गई।
एक छः फुट गहरा गड्ढा बनाया गया। उसमें बीस व्यक्तियों के खड़े होने की जगह थी। घोषणा की गई कि जो इस गड्ढे से ऊपर चढ़ आवेगा उसे आधा राज्य पुरस्कार में मिलेगा।
बीसों प्रथम चढ़ने का प्रयत्न करने लगे। जो थोड़ा सफल होता दीखता उसकी टाँगें पकड़कर शेष उन्नीस नीचे घसीट लेते। वह औंधे मुँह गिर पड़ता। इसी प्रकार सबेरे आरम्भ की गई प्रतियोगिता शाम को समाप्त हो गयी। बीसों को असफल ही किया गया और रात्रि होते-होते उन्हें सीढ़ी लगाकर ऊपर खींच लिया गया। पुरस्कार किसी को भी नहीं मिला।
मंत्री ने अपने मत को प्रकट करते हुए कहा – यदि यह एकता कर लेते तो सहारा देकर किसी एक को ऊपर चढ़ा सकते थे। पर वे ईर्ष्यावश वैसा नहीं कर सकें। एक दूसरे की टाँग खींचते रहे और सभी खाली हाथ रहे।
संसार में प्रतिभावानों के बीच भी ऐसी ही प्रतिस्पर्धा चलती हैं और वे खींचतान में ही सारी शक्ति गँवा देते है। अस्तु उन्हें निराश हाथ मलते ही रहना पड़ता है।
दोस्तों, जीवन को एक दूसरे की टांग खींचने मे मत गंवाओ, किसी के काम आ सकते हो तो ये सोचकर मत आओ की कल हमे वो काम आएगा या नही। आज किसी का भला करके आप भूल जाओ । जमीन मे जब आप किसी पौधे का रोपण करते हो तो बार बार उखाड़ कर नही देखते की कितना बढ़ा हुआ है ।
आप किसी को प्रेरित करो, उसे उसके लक्षय तक पहुचानें मे मदद करो, प्रकृति ने आपको इस हेतु बल दिया है, प्रकृति ने आपको आशीर्वाद दिया हैं कि आप किसी को अपने मजबूत काँधे पर बिठाकर उसको उंचाई तक पहुचाने मे मदद करोगे, फिर देर किस बात की??