भारत में सब से ज्यादा शिक्षित समाज में हम लोग आते है। परन्तु हमारे सबसे ज्यादा कार्यक्रमो मे अनुशासनहिनता नज़र आती है। अहमदाबाद में एक घटना घटि जिसमे स्वामी नारायण समुदाय के मुख्य संत हरि भक्तो के गुरु प्रमुख स्वामी जी ने समाधी पूर्वक देह का त्याग किया और उनके पंच तत्व में विलिन होने तक जो उनके शिष्य वर्ग ने उनके भक्तो ने जो अनुशासन का परिचय दिया वह सम्पूर्ण विश्व के लिए आदर्श बन गया। First से लगाकर last तक हर व्यक्ति की आँखे दुःख से भरी थी। सभी को गुरु के विरह की असहय वेदना भोगनी पड़ी ।
परन्तु इसमें भी सारे लोग अनुशासन में नज़र आये। जब लोगों के दिलो में भयंकर दर्द था फिर भी किसी ने भी संयम नही खोया। और उनकी सारी अंतिम क्रिया विधि पूर्वक संपन्न हो पाई।
जबकि हमारे यहाँ सारे के सारे पढे लिखे लोग का समूह सबसे ज्यादा शिक्षित समाज और हमारे यहाँ परमात्मा की प्रतिष्ठा से लगाकर- गुरु भगवन्तो के कालधर्म तक के हर आयोजन में हमारे लोग संयम खो देते है। हर इंसान अनुशासनहिनता में लग जाता है। हमारे यहाँ पर शायद वह व्यवस्था के लिए बने नियमो को अपने अहंकार से टकराते देखता है। और उनको तोड़ने में सबसे ज्यादा अग्रसर बन जाता है। ऐसा करना हमारे हाथो से ही हमारे पैरो पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। फिर वह फाल्गुन 13 की गिरिराज यात्रा हो या फिर सम्मेतशिखर में पार्श्वनाथ निर्वाण कल्याणक की यात्रा हो या फिर अंजनशलाका प्रतिष्ठा, छ:री पालित संघ, चातुर्मास हर जगह पर धक्का मुक्की होना यह हमने हमारी पहचान बना ली है। अगर हमने बदलाव नही किया तो युवा वर्ग हमारे धार्मिक आयोजनों से दूर होने लगेगा जिनके उपर सबसे ज्यादा भविष्य आश्रित है।
हमे अब संभलना है। और एक अच्छा अनुशासित समाज बन कर उभरना है। तभी हमारा अनुकरण पूरा विश्व करेगा।।