एक बार श्रमणो मे ज्ञानचर्चा चल रही थी। प्रत्येक चर्चा मे मतभेद तो होते रहते है। जिस चर्चा मे मतभेद नही उसमे रस भी नही होता। इन्टरेस्ट भी नही जागता है। यहा तो साधु भगवन्तो मे चर्चा चल रही थी। चर्चा का विषय भी रोचक था। रोचक विषय से चर्चा मजेदार हो गई थी। चर्चा का विषय था ” भवसागर मे पहले कौन डूबेगा? ” कामी, क्रोधी, लोभी, मोही, मायावी, कपटी या अभिमानी?
सारे के सारे साधु भगवंत अपनी प्रज्ञा से तर्क के साथ उन्हे जो ठीक लग रहा था उसका अभीप्राय दे रहे थे।सभी के जवाब तर्क संगत थे। जिसको तोडना नामुमकिन था। अन्ततः कोई निर्णय नही हो सका। श्रमण भगवंत वहाँ से खडे होकर आचार्य भगवंत के पास निराकरण कराने के लिए गये। आचार्य प्रवर के पास जा कर वंदन करके प्रश्न का समाधान करने की विनंती की।
सारे शिष्यो को ( साधुओ को) बिठाकर कहा की पहले तुमे मेरे प्रश्न का जवाब देना होगा। एक सुंदर अच्छा सुखा तुंबडा हो जिसमे एक भी छेद ना हो एसे तुंबडे को पानी मे डूबाने का भय होगा क्या? शिष्यो ने अपना जवाब दिया- नही गुरुदेव उसमे क्या भय? वह तो निर्भयता के साथ पानी के उपर तैरने लगेगा।
फिर गुरुदेव बोले अगर उसमे कही पर भी छेद हो तो फिर क्या होगा? सारे शिष्य एक स्वर मे बोले- फिर तो पक्का डूबने का भय है।
परंतु अगर छोटा सा छेद तुंबडे के एक तरफ नही हो और दुसरी तरफ हो तो? शिष्य बोले कि तो भी डूबने का भय तो रहेगा ही।
चलो अच्छा बिलकुल ऊपर उसके छिद्र हो तो क्या होगा? गुरुदेव उस तुंबडे मे छिद्र ऊपर हो या नीचे हो दाँये हो या बाँये हो किधर भी होगा तो उसके डुबने का भय रहने वाला है। यह बात सारे श्रमणो ने एक साथ गुरुदेव को बोली।
गुरूदेव भी गीतार्थ थे। उन्होंने बोला- हे शिष्य! इस प्रश्नावली का सार यह निकला है कि तुंबडे मे छेद कहाँ है यह बात महत्व नही। तुंबडे मे छेद है यह महत्वपूर्ण है। अब हम मुख्य बात पर आते है। काम, क्रोध, लोभ, मान, माया, राग, द्वेष इनमे से कौन सा दुर्गुण मुख्य है? इस बात का इतना महत्व नही है। मुख्य बात तो यह है कि मानव का मन पहले बिगड़ा। दुर्गुण तो सारे के सारे खराब है। लेकिन जब मानव का मन बिगड़ता है तब तो उसमे फिर दुर्गुण प्रवेश करते है। अगर दुर्गुण के प्रवेश को रेकना है तो सर्व प्रथम मन की सफाई करनी पडेगी। क्योंकि जिसका मन बिगड़ा उसका सब कुछ बिगडा। मन की क्लीननेस सबसे ज्यादा जरूरी है। जिस तरह एक छोटा सा छेद भी तुंबडे को डुबा देता है ठीक उसी तरह से एक छोटा सा दुर्गुण आत्मा को भव सागर मे डुबा देता है। अगर जीवात्मा को भव सागर से तारना है तो उसके लिए हमे हमारे मन को हमेशा साफ रखना होगा। अगर हमारा मन हमेशा साफ होगा तो मन मे उनका प्रवेश ही नही होगा भवसागर से तरना भी हमारा fix हो जाएगा ।
बस तो फिर भवसागर से तिरना है तो
मन को साफ कर दो। आपकी नौका पार ।।