चैत्री पूनम को आदीश्वर भगवान के प्रथम गणधर, भरत चक्रवर्ती के पुत्र, पुण्डरीक स्वामी ५ करोड साधु भगवंतो के साथ शत्रुंजय गीरि से सिद्ध पद को पाये थे
चैत्री पूनम की कथा
एक दिन चार ज्ञानी पुण्डरीक स्वामी(मति,श्रुत,अवधी,मनपर्ययः ज्ञान)५ करोड साधुओ के साथ विहार करते हुए सोरठ गांव पधारे
अनेक राजा, शेठ, सेनापति, बहुत लोग वंदन करने आए
एक स्त्री, अपनी दुःखी, विधवा पुत्री के साथ आई
पुण्डरीक गणधर को वंदन करके पूछा की मेरी पुत्री ने पूर्व भव मे क्या पाप किया था? कि हस्तमेलाप से ही उसी वक्त उसका पति मर गया
पुण्डरिक गणधर कहते है कि-
जंबूद्वीप के पूर्व महावीदेह मे धनावह शेठ के दो पत्निया थी चंद्रश्री और मितश्री
चंद्रश्री ने अपने पति पर अत्यधिक राग से दूसरी पत्नी मितश्री के शरीर मे मंत्र, तंत्र द्वारा डाकण का प्रवेश कराया और
जिससे मितश्री को पति ने त्याग दिया और चंद्रश्री के वश मे हो गये
वही चंद्रश्री पाप का प्रायश्चित किये बीना तुम्हारी पुत्री बनकर जन्मी है
स्त्री कहती है कि मेरी दुःखी विधवा पुत्री पेड की डाल से फांसी खाने जा रही थी, वही से छुडाकर लाई हू
कृपया इसे दीक्षा देकर इसका कल्याण करे
पुण्डरिक गणधर कहते है कि तुम्हारी पुत्री दीक्षा के लिये अयोग्य है
पुत्री ने कहा कि मेरे योग्य घर्म बताइये
पुण्डरिक गणधर ने उसे चैत्री पूनम की अराधना १५ वर्ष के लिये करने को कहा
चैत्री पूनम का नियम स्वीकार कर वह देवलोक मे जन्मी
देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर वह महाविदेह मे पुत्र रूप मे जन्म लेगी, उसका नाम पुर्णचन्द्र होगा,१५कोडी द्रव्य का स्वामी होगा,१५ पत्निया होगी, १५ पुत्र होंगे
पुर्णचन्द्र उस भव मे भी चैत्री पूनम की अराधना कर जयसमुद्र गूरू के पास दीक्षा लेकर उसी भव मे मोक्ष जायेंगे
चैत्री पूनम के दिन किया गया कोई भी धर्म,पुण्य कार्य ५ करोड गुणा फल देता है
चैत्री पूनम के दिन शत्रुंजय तीर्थ पर प्रभूपूजा, भक्ति करने से देवता की पदवी मिलती है
चैत्री पूनम
सभी पूनम में चैत्री पूनम अत्यंत पूण्यवृद्धि करने वाली हे।
परमपावन तीर्थाधिराज श्री विमलाचल तीर्थ पर अनेक
विद्याधर चक्रवर्ती आदि महापुरुषो ने सिद्धगति प्राप्त
की।
श्री ऋषभदेव प्रभु के नमी विनमि नामक दो पुत्रो ने मोक्ष
पद प्राप्त किया।
प्रथम गणधर श्री पुण्डरीक स्वामी जी इसी दिन ५ करोड़
मुनिओ के साथ मोक्ष गए इसीलिये इस तीर्थ को पुण्डरिक
गिरि भी कहते हे।
श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब प्रद्युम्न
दशरथ का पुत्र भरत शुक नाम के मुनि शैलक पंथक बाली श्री
रामचंद्रजी द्रविड़ राजा नमी विनमि 9 नारद 5 पांडव
इत्यादि अनेक आत्माओ ने सिद्धगति प्राप्त की।
जो व्यक्ति इस दिन उपवास सहित इस तीरथ पर पूजा
प्रभावना करता हे वो नरक त्रियंच गति का छेदन करताहे।?
इस दिन जो प्राणी मंत्राक्षर से पवित्र स्नात्र जल को
लेकर घर में छांटता हे उसके घर से महामारी आदि उपद्रव नष्ट
हो जाते हे।
उपासक सदा ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पदा प्राप्त कर मोक्ष
सुख की प्राप्ति करता हे।
श्री नंदीश्वर द्वीप में शाश्वत भगवान् के पूजन से जितना
पूण्य उपार्जित होता हे उससे अधिक पूण्य चैत्री पूर्णिमा के
दिन श्री सिद्धाचल तीर्थ पर श्री ऋषभदेव भगवान् के पूजन
स्तवन से होता हे।
जो मनुष्य अन्य स्थान पर रहता हुआ भी इस दिन श्री ऋषभ
देव स्वामी और पुण्डरीक स्वामी जी की आराधना करता हे
वो देवगति प्राप्त करता हे।
जो आत्मा श्री विमलाचलगिरि पर जाकर प्रभु पूजा करता
हे वो अनंतगुणा पूण्य प्राप्त करता हे।
इस प्रकार इस दिन दान तपस्या ध्यान सामायिक जिनपूजा
ब्रह्मचर्य का पालन इत्यादि धर्म कार्य करने से अनंतगुना
पूण्य मिलता हे।
अतः सभी भव्य आत्माओ को इस पर्व की आराधना करके
अपना कल्याण करना चाहिये।
सिर्फ एक दिन की आराधना प्रभु भक्ति हमे अनन्ता गुना
पूण्य दे सकती हे
तो हमे इसका लाभ उठाना चाहिये ताकि हम अपने इस भव
के साथ साथ आगामी भवो को भी सार्थक कर् सकें।
कल चैत्री पूनम
आराधना कैसे करे
अब प्रश्न ये हे किस तरह करे आराधना।
इस दिन जिनेश्वर प्रभु की द्रव्य और भाव पूजा स्नात्र
महोत्सव गुरुदेव का व्याख्यान सुनना
दीन हीन को दान शीलपान करना जीवदया सिद्धाचल
की स्थापना कर उसकी पूजा गुरुदेव की निश्रा में:-
५ शक्रस्तव
८ स्तुतिया से देववन्दन करना
१०,२०,३०,४०,५० स्वस्तिक करना
१५० लोगस्स का काउसग्ग
१५० प्रदक्षिणाय
२० माला
२ समय प्रतिकमण करना फल और नैवैद्य चढाने विधिपूर्वक इस
दिन आराधना करनी
पारणे के दिन गुरुदेव को आहार वोहरा कर स्वयं पारणा
करना।
इस प्रकार15 वर्ष् तपस्या करके उत्तमोत्तम पर्व की आराधना
करनी चाहिये।
तपस्या पूर्ण होने पर यथाशक्ति उद्यापन करना चाहिये।
इस पर्व की आराधना से पुत्र स्त्री देवसुख सौभाग्य और
कीर्ति मिलती हे।
रोग शोक वैधव्य दुर्भाग्य मृतत्वस्था परवशता इत्यादि
दुष्कर्मो का नाश होता हे।
भूत प्रेत शाकिनी ग्रह आदि सब कष्ट विकष्ट होते हे।
जो आत्मा त्रिकर्ण योग से चैत्री पूनम की आराधना करती
हे वो मोक्षसुख प्राप्त करती हे।
चालो सिद्धगिरीराज… मले मुक्ति नी पाज…गिरी सिद्ध
अनंत नो मुकाम छे…
सिद्धगिरि ने नमो, नमो
पुण्डरिकगिरि ने नमो नमो
विमलाचल गिरि ने नमो नमो
वंदन हो गिरिराज ने