मैं एक बैंक में सशस्त्र सुरक्षा गार्डके रूपमें पदस्थ हूँ।दिनाक13 अप्रेल 2014 ई. को एक अनोखी घटना बैंकमें घटी । हुआ यूं कि भोजन-आवकाशके बाद एक ग्राहक बैंक आया और उसने आपने खतेसे तीन हजार रुपये आहरित किये। उसे कैशियर ने पाँच-पाँच सौ के छः नोट इश्यू किये। वह ग्राहक एक स्टेशनरी की दुकांनेपर कार्य करता था और सुबह – सुबह अकबर भी बाटता था,तब जाकर अपने परिवारका उदर-पोषण कर पाता था। उसके लिए तीन हजार रुपये सामान्य बात नही थी । राशि आहरित करने के बाद वह न जाने की जल्दी में था कि उसकी जेबसे वे पाँच-पाँच सौ के नोट स्कूटर-स्टेण्ड के समीप बैंक -परिसरमें ही गिर गये और वह चला गया।
मैं अपनी बारह बोर बंदूक कंधेपर लिए सजगता से बैंक -परिसरमें टहल रहा था। इतनेमें एक्टिवा स्कूटरसे एक बहन आयी और उन्होंने संकेत किया कि किसी व्यक्ति के ये पैसे पड़े है । इतना कहकर वे बहन अपने गन्तव्यको रवाना हो गयी । वे तीन हजार रुपये मैने उठाये औऱ बैंक में ऊँची आवाजमें कहा कि भाई !किसी सज्जनके पैसे गिरे है औऱ मुझे मिल चुके हैं ।जिसके हो , वे सज्जन राशिकी तादाद और नोटंकी संख्या सही-सही बताये और रुपये प्राप्त कर लें। राशि और नोटोका प्रकार मैंने गोपनीय रखा । लगभग सौ ग्राहक और चौदह लोगोंके स्टाफ़साहित राशिपर किसने अधिकार नही जताया।राशि शाखा प्रबंधक के पास जमा कर दी गयी।
ब्रांच बंद होते समय उन ग्राहक महोदयने खोजती निगाहों के साथ बैंकमें प्रवेश किया और यहाँ-वहाँ खोजने लगे। मैंने उनसे पूछा कि भाई! क्या कुछ खो गया है?तो उन्होंने कहा-‘गनमैन साहब! मेने 3000 रुपये आहरित किये थे।जेबमें रख लिये थे ,पर न जाने कहाँ गिर गये हैं । उसके चहरे से साफ झलक रहा था कि उक्त राशि उसीकी है । मैंने उसे सांत्वना दिलायी, साहस दिलाया कि घबराइये नही , पैसे मिल जायेंगे । फिर शाखा प्रबन्धकको उसने एन्ट्री की हुई पास बुक दिखायी तो उसमें 13 अप्रेल 2014 ई.को 3000 रुपये की राशि आहरित की गयी थी।नोट भी उसने पाँच-पाँच सौ के छः ही बताये थे। शाखा प्रबंधक ने उक्त राशि उसे सहर्ष सौपी । उस गरीब एव सह्रदय इंसान ने सन्तोषकी साँस ली,उसका चहरा प्रसन्नता से खिल उठा। उसने तत्काल सौ रुपये मुझे पारितोषिक(इनाम के रूप )स्वरूप दिये और बार – बार धन्यवाद देता रहा। मैंने कहा कि भाई!धन्यवाद की पात्र तो वे बहनजी है, जिन्होंने तुम्हारे गिरे हुए रुपयों की ओर मुझे संकेत किया और उन परमात्माका धन्यवाद करो, जिन्होंने मुझे कर्तव्य – पथपर बनाये रखा।
कहनेका तात्पर्य है कि ईश्वर कभी -कभी आपकी ईमानदारी की परीक्षा किसी भी रूप में ले सकता हैं।
अतः हमें उसके सहारे अपने कर्तव्य-पथ पर दृढ़ रहना चाहिये।
उसकी राशि उसे ही प्राप्त हो गई तो मुझे भी आत्मिक सन्तोष प्राप्त हुआ और लंबे समय से मेरा कल्याण का ग्राहक होना सार्थक रहा।