क्या आप जानते हैं कि इस विशाल ब्रह्माण्ड का 1% हिस्सा भी हमारा आज का आधुनिक विज्ञान पता नहीं कर पाया है, जबकि एक धर्म ऐसा है जिसने
तीन लोक का पूरा नक्क्षा ही प्रस्तुत कर दिया है।
पहले विज्ञान बताता था कि अन्तरिक्ष में जीव नहीं होते हैं, और वह खाली है, इस जगह पर उनका आधुनिक विज्ञान पहुंचा ही नहीं था। लेकिन आज का विज्ञान भी मानता है कि वहां पर एक विशेष तरह का द्रव्य होता है। लेकिन एक धर्म विशेष तो इस पूरे ब्रह्माण्ड की सभी खाली जगह पर ठसाठस भरे हुए जीव ही बताता है, क्या आप जानते हैं कि आलू में एक सुई डालकर निकाले, तो उसकी नोक पर तीनो काल में होने वाले
सिद्धों से भी अनंत गुना ज्यादा जीव होते है।
लेकिन यह धर्म विशेष तो इन सभी बातों को नय-न्याय, तर्क और विज्ञान से समझाता है।
हे चैतन्य आत्मन्, आप जानते ही हैं कि धर्म तो धृ धातु से बना हुआ है,
जिसका अर्थ होता है धारण करना।
“वस्तु स्वभावो धम्मो”, यानी कि वस्तु का स्वभाव ही उसका धर्म होता है ।
अतः जो आप हो, ऐसे अपने शाश्वत चैतन्य परमात्मा को जानना, मानना और धारण करना ही धर्म होता है । हम इसी को आत्मतत्वपना भी कहते है । यह धर्म ही सबको परमात्मा ही देखता है, तथा प्राणिमात्र के परमात्मा बनने का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
सभी भक्तों को भगवान बनने का मार्ग दिखाता है, पामर से परमात्मा बनने की राह सुझाता है, खुद से प्रभु बनने की शक्ति देता है।
यह अद्भुत, अनोखा और शाश्वत धर्म है अपने स्वभाव में विचरण करने वाला
आपका निज आत्म धर्म।