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हमने स्वयं की बर्बादी स्वयं ही लिख दी

हमने स्वयं की बर्बादी स्वयं ही लिख दी अब कौन बचाएगा?
अरे! हम कहते है, आज कि इस युवा-पीढ़ी को कि क्या झाँसी कि रानी आजाद नहीं थी। जोधाबाई सुन्दर नहीं थी? अकबर के पास पैसा नहीं था। सबके पास सब कुछ था। पर सब अपनी मर्यादा में जीवन जी रहे थे। सीता ने मर्यादा की रेखा लांधी। नतीजा रावण के द्वारा अपहरण!
जब से इंसानों ने मरयादो को छोड़ा तब से दुःख ही पता हैं।
1.अच्छा संभल जाओ मेरी युवा पीढ़ी, जला दो अपने मन के बुरे तार को।
लौट आओ अपने उसी पुराने घरो में, दादा-दादी की मिति कहानी में,
माता –पिता कि डांट और दामन में।

2. फूल नहीं काँटे हैं, जिसके घर संस्कार नहीं,
मानव होकर जिसके दिल में बेहती नहीं नलक्ष्ण धर,
ह्रदय नहीं पत्थर हैं, जिसमे अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं।

3.पेढ की सुन्दरता पत्ते से नहीं, फल से होती हैं।
नदी की सुन्दरता रेत से नहीं, जल से होती हैं।
फैशन के नए दौर पर विश्वास रखने वालो,
जीवन की सुन्दरता संस्कारो और मर्यादों से होती हैं।

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