चैतन्य आत्मा का कोई धर्म या वर्ण या शरीर नही होता है ।
हे अबोध,
इस संसार में दिख रहा कोई भी प्राणी किसी भी धर्म या वर्ण वाला नही रहता है । क्योंकि आत्मा का कोई धर्म या वर्ण नही होता है । यह ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र भी नही होता है । हमने सभी तरह के जन्म अनंत बार धारण किये हैं, जिसमे चौरासी योनियों के सभी तरह के जन्म भी शामिल है, साथ ही आत्मा आँख आदि इंद्रियों का विषय भी नहीं है ।
आपकी चेतनता भी शरीर नही है,
वह तो सिर्फ आत्मा है,
जो चैतन्य सम्राट है,
साक्षी है,
सुख और आनंद का सागर है,
ऐसा जानकर अब आप सदाकाल सुखी रहो ।
यह शुद्ध आत्मा की ही बात है । अगर कोई भी व्यक्ति ऐसी शुद्ध आत्मा की बात पढ़ कर या सुनकर लिखता है, तो वह शुद्ध बात अशुद्ध नहीं हो जायेगी । फिर क्या हमे किसी भी दूसरे व्यक्ति की ओर ऊँगली उठाने का हक है ?
अतः हे प्रिय आत्मन्, अब आप सिर्फ अपने शुद्ध चैतन्य तत्व में ही लीन रहो ।