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दिन की कहानी 10, फरवरी 2016

प्रभु नाम से कल्याण

एक बार एक पुत्र अपने पिता से रूठ कर घर छोड़कर दूर चला गया और फिर इधर-उधर यूँही भटकता रहा । दिन बीते, महीने बीते और साल बीत गए ।

एक दिन वह बीमार पड़ गया । अपनी झोपडी में अकेले पड़े उसे अपने पिता के प्रेम की याद आई कि कैसे उसके पिता उसके बीमार होने पर उसकी सेवा किया करते थे । उसे बीमारी में इतना प्रेम मिलता था कि वो स्वयं ही शीघ्र अति शीघ्र ठीक हो जाता था । उसे फिर एहसास हुआ कि उसने घर छोड़ कर बहुत बड़ी गलती की है, वो रात के अँधेरे में ही घर की और हो लिया ।

जब घर के नजदीक गया तो उसने देखा आधी रात के बाद भी दरवाज़ा खुला हुआ है । अनहोनी के डर से वो तुरंत भाग कर अंदर गया तो उसने पाया की आंगन में उसके पिता लेटे हुए हैं । उसे देखते ही उन्होंने उसका बांहे फैला कर स्वागत किया । पुत्र की आँखों में आंसू आ गए ।

उसने पिता से पूछा ” ये घर का दरवाज़ा खुला है, क्या आपको आभास था कि मैं आऊंगा ? ” पिता ने उत्तर दिया ” अरे पगले ये दरवाजा उस दिन से बंद ही नहीं हुआ जिस दिन से तू गया है, मैं सोचता था कि पता नहीं तू कब आ जाये और कंही ऐसा न हो कि दरवाज़ा बंद देखकर तू वापिस लौट जाये ।”

ठीक यही स्थिति उस परमपिता परमात्मा की है । उसने भी प्रेमवश अपने भक्तो के लिए द्वार खुले रख छोड़े हैं कि पता नहीं कब भटकी हुई कोई संतान उसकी और लौट आए ।

हमें भी आवश्यकता है सिर्फ इतनी कि उसके प्रेम को समझे और उसकी और बढ़ चलें ।

दिन की कहानी 10, फरवरी 2016
February 10, 2016
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