आत्मा यानि क्या ? आत्मा द्रव्य से केसी है ? आत्मा क्षेत्र से केसी है ? भाव से आत्मा में कितना ज्ञान है ? बल, वीर्य और पराक्रम केसा है ? वह स्थिर है या अस्थिर है ? ध्रुव है या अध्रुव ? संख्या से, लक्षण से और प्रयोजन से आत्मा का स्वरूप केसा है ? इस प्रकार आत्मा सम्बन्धी विषयो का विचार समता भाव के अभिलाषी जिव को करना आवश्यक है!
आत्मा को समझने के पहले सर्वप्रथम शरीर के स्वरूप को समझना पड़ेगा । क्योंकि अधिकांश जीवो को शरीर में ही ममत्व बुद्धि होती है । जब तक शारीर में, उसके नाम में, उससे संबंधित पदार्थो में ममत्व बुद्धि होती है तब तक जिव सामायिक धर्म का अधिकारी नही बन पाता ।
शरीर और आत्मा का स्वरूप एक दूसरे से अत्यंत भिन्न है । शरीर का आदि और अंत होता है । शरीर मूर्त यानि रूपी है, आत्मा अमूर्त यानि अरूपी है । शरीर इंद्रियों से ग्राह्म है, आत्मा इंद्रियों से ग्रहण नही किया जाता । शरीर `पर` है आत्मा स्व है । शरीर में मम की बुद्धि होती है । आत्मा में अहं की बुद्धि होती है । शरीर अनेक है, आत्मा एक है । शरीर भोग्य है आत्मा भोक्ता है । शरीर दृश्य है आत्मा द्रष्टा है । शरीर विनाशी है आत्मा अविनाशी है । जन्म, म्रत्यु यह शरीर का स्वभाव है, आत्मा का स्वभाव अज, अयोगी, अजर, अमर है । शरीर कर्मजनित है आत्मा अजन्मा, ध्रुव और शाश्वत है ।
सामायिक धर्म की योग्यता को प्राप्त करने का पहला कदम कोई है तो वह है तत्व ज्ञान ।
शारीर और आत्मा दोनों का स्वभाव, स्वरूप, लक्षण एक समान नही है, अलग अलग है, इस ज्ञान प्राप्त होने पर ही जिव सामायिक धर्म को प्राप्त कर सकता है ।
आत्मा, यह देह नही परन्तु देहि है । शरीर नही परन्तु शरीरी है । शरीर, यह आत्मा के रहने का घ्र है । आत्म इस घ्र में रहनेवाला, घर का स्वामी है ।