आत्मा की दो अवस्थाएँ :
आत्मा की शुद्ध अवस्था मोक्ष और आत्मा की अशुद्ध अवस्था संसार है ।
शुद्ध या अशुद्ध अवस्था किसी वस्तु की होती है ।
जिव , यह वस्तु है ।
उसकी दो अवस्थाएँ है ।
एक शुद्ध और दूसरी अशुद्ध ।
अशुद्ध अवस्था में रह हुआ जिव किस प्रकार शुद्ध अवस्था को प्राप्त कर सकता है , उसके उपाय बताने के लिए ज्ञानी महापुरुषों ने ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः इस सूत्र की रचना की है ।
जिव का मोक्ष मात्र ज्ञान से या मात्र क्रिया से नही होता लेकिन दोनों के संयोग से होता है । इस प्रकार तत्व को यह सूत्र स्पष्टतापूर्वक बता रहा है ।
दूसरे शब्दों में कह सकते है , क्रिया निरपेक्ष ज्ञान , वह ज्ञान ही नही है और ज्ञान निरपेक्ष क्रिया , वह क्रिया ही नही है ।
सम्यग् ज्ञान क्रिया सहित ही होता है ।
सम्यक क्रिया ज्ञानपूर्वक ही होती है ।
इस प्रकार क्रिया और ज्ञान , जल और जल के स्वाद की तरह परस्पर सम्मिलित ही रहते है । उन्हे एक दूसरे से अलग नही किया है सकता! उसी तरह सम्यग् ज्ञान और सम्यक क्रिया भी अलग नही किये जा सकते!
सम्पत्तिहीन कोई दरिद्र व्यक्ति चिंतामणि रत्न के स्वरूप का जानकार हो , तो उसकी प्राप्ति हेतु उपायों को छोड़कर अन्य प्रवर्ती करे ही नही ।
इस प्रकार उपाय का नाम है क्रिया !
शुद्ध और अशुद्ध अवस्था के स्वरूप की सही समझ का नाम है ज्ञान!
मोक्ष की तरह संसार के भी सभी कार्यो की सिद्धि में ज्ञान और क्रिया साथ में ही कार्य करते है ।