एक बार घूमते-घूमते कालिदास बाजार गये, वहाँ एक महिला बैठी मिली
उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियाँ पड़ी थी।
कालिदास जी ने उस महिला से पूछा:- क्या बेच रही हो?
महिला ने जवाब दिया: महाराज! मैं पाप बेचती हूँ।
कालिदास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा: पाप और मटके में?
महिला बोली: हाँ महाराज मटके में पाप है।
कालिदास: कौनसा पाप है?
महिला: आठ पाप इस मटके में है। मैं चिल्लाकर कहती हूँ कि, मैं पाप बेचती हूँ पाप; और लोग पैसे देकर पाप ले जाते है।
अब महाकवि कालिदास को और आश्चर्य हुआ: पैसे देकर लोग पाप ले जाते है?
महिला: हाँ महाराज! पैसे से खरीदकर लोग पाप ले जाते है।
कालिदास: इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है?
महिला: क्रोध, बुद्धिनाश, यश का नाश, स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय, चोरी, असत्य आदि दुराचार, पुण्य का नाश, और स्वास्थ्य का नाश ।
ऐसे आठ प्रकार के पाप इस घड़े में है।
कालिदास को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है।
किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते है,
वे बोले: आखिरकार इसमें क्या है?
महिला: महाराज! इसमें शराब है शराब।
कालिदास महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले: तुझे धन्यवाद है!
शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और “मैं पाप बेचती हूँ” ऐसा कहकर बेचती है। फिर भी लोग ले जाते है धिक्कार है ऐसे लोगों पर।
(वर्तमान मेँ गुटखे, तम्बाकू, सिगरेट आदि पर चेतावनी लिखी रहती है कि इनसे कैँसर हो सकता है फिर भी लोग दुगने पैसे देकर ब्लैक मेँ खरीदते है।)